चन्दू भैया की गैस एजेन्सी पर

मैं जब चन्दू भैया के चेम्बर में पहुँचा तो समूचा दृश्य तनिक विचित्र और वातावारण असहज तथा भारी था। एक व्यक्ति अत्यन्त अशिष्ट मुद्रा में और उससे भी अधिक अहंकारी भाव-भंगिमा से खड़ा था-ऐसे, मानो चन्दू भैया के चेम्बर में आकर और चन्दू भैया को काम बता कर उसने न केवल चन्दू भैया पर अपितु उनके पुरखों पर भी उपकार किया हो। चन्दू भैया उसकी अपेक्षानुरूप उसे सहयोग करते नजर नहीं आ रहे थे सो वह अत्यधिक कुपित था। पूरे चेम्बर में, अपने चरम पर छाया हुआ अनुभव बिना किसी कोशिश के पहली ही साँस में अनुभव हो रहा था।

इससे पहले कि चन्दू भैया मेरी मनुहार करते, मैं नमस्कार कर उनके ठीक सामने बैठ गया। थोड़ी ही देर में सारी बात समझ में आ गई।

चन्दू भैया मेरे कस्बे में एक गैस एजेन्सी के संचालक हैं। एक तो वे पहले से ही ‘घनघोर सामाजिक प्राणी’ और उस पर गैस एजेन्सी के संचालक भी! सो, उनकी जान-पहचान की न तो सीमा का अनुमान किया जा सकता है और न ही है इसके प्रभाव क्षेत्र की व्यापकता का।जो व्यक्ति वहाँ ‘अशिष्टता और अभद्रता का मानवाकार’ बन कर खड़ा था, उसे एक गैस सिलेण्डर चाहिए था। उसके पास जो डायरी था वह उसके नाम की नहीं था और न ही उसने, उस डायरी पर गैस बुक करवा रखी थी। किन्तु उसे सिलेण्डर चाहिए था, तत्काल चाहिए था और वह भी अपनी चाय की होटल के लिए। मामला मुझे रोचक लगा और मैं अतिरिक्त उत्सुकता तथा सतर्कता से सब कुछ देखने लगा।

जैसा कि मैं अनुमान कर रहा था, चन्दू भैया ने असमर्थता जताई। शायद, मेरे पहुँचने से पहले भी वे मना कर चुके थे। चन्दू भैया का दूसरी बार मना करना उस व्यक्ति को असहनीय ही नहीं, अपनी हेठी भी लगा। उसने अशिष्टतापूर्ण आत्मविश्वास से कहा -‘निगोसकर साहब से बात कर लो।’ मुझे नहीं पता कि निगोसकर साहब कौन हैं। किन्तु यह अनुमान तो हो ही गया कि वे निश्चय ही ऐसे विभाग के ऐसे प्रभावशाली अधिकारी हैं जिनकी बात टालना गैस एजेन्सी के संचालक के लिए असम्भव नहीं तो कठिन तो होता ही होगा।

निगोसकरजी के नाम का असर फौरन ही हुआ है, यह मैंने देखा। चन्दू भैया ने फोन लगाया और बात शुरु की। सम्वादों से मालूम हुआ कि निगोसकरजी जिला खाद्य अधिकारी हैं। उन्होंने क्या कहा, यह तो पता नहीं हो पाया किन्तु चन्दू भैया ने वस्तुस्थिति तथा आए हुए व्यक्ति के अभद्र और अशिष्ट व्यवहार की जानकारी दी। जल्दी ही बात समाप्त हो गई। चन्दू भैया ने उस व्यक्ति को कहा कि वह पहले गैस कनेक्शन अपने नाम करा ले। फिर सिलेण्डर ले ले। उसने कहा -‘तो इसमें मुझे क्या करना है? नाम ट्रांसफर तो तुम ही करोगे। कर दो ट्रांसफर और दे दो टंकी।’ इस बार केवल चन्दू भैया न ही नहीं, चेम्बर मे बैठे हम सब लोगों ने उसकी ओर देखा। हम सबकी नजरों में लबालब भरी भत्र्सना उसने शायद तत्क्षण ही पढ़ ली। वह ‘आहत अहम्’ लिए (कुछ इस तरह व्यवहार करते हुए कि ‘तुमने ठीक नहीं किया। तुम्हें देख लूँगा।’) चला गया।

उसके जाने के बाद चन्दू भैया से विधिवत् नमस्कार हुआ। अचानक ही उन्होंने फिर निगोसकर साहब को फोन लगाया और पूरी बात बताते हुए सूचित किया कि उस व्यक्ति को बिना सिलेण्डर दिए लौटा दिया है। उस व्यक्ति की अशिष्टता, अभद्रता और भाषा का उन्होेंने विशेष रूप से, एकाधिक बार उल्लेख किया और अकस्मात ही ‘मैं क्या कहूँ, ये विष्णु भैया सामने बैठे हैं, इन्होंने सब कुछ देखा-सुना है। आप इन्हीं से पूछ लें।’ कहते हुए मुझे फोन थमा दिया। मैं इस स्थिति के लिए बिलकुल ही तैयार नहीं था और न ही निगेासकरजी को जानता था। लेकिन अब तो मुझे बात करनी ही थी। नमस्कार के बाद मैंने उनसे कहा कि जैसा व्यवहार उस व्यक्ति ने किया है वैसा व्यवहार तो खुद निगोसकरजी का दामाद भी (उन्हें परेशान करनेे की नीयत से भी) नहीं करता। मैंने उनसे एक निवेदन किया कि वे भविष्य में (न केवल किसी गैस एजेन्सी पर, अपितु कहीं भी) किसी भी व्यक्ति को सिफारिशी तौर पर भेजें तो उससे यह अवश्य कहें कि वह ऐसा कोई व्यवहार न करे जिससे उनकी (निगोसकरजी की) प्रतिष्ठा कलंकित, लज्जित हो।

निगोसकरजी ने न केवल मुझसे सहमति जताई अपितु पूरे घटनाक्रम के लिए खेद भी प्रकट किया। मुझे संकोच हो आया। वे मेरे प्रति तो कहीं भी जिम्मेदार नहीं थे! मुझे आश्चर्य हुआ कि एक ओर तो निगोसकरजी हैं जो एक अपरिचित से खेद प्रकट कर रहे हैं और एक वह व्यक्ति था जो निगोसकरजी का नाम लेकर अकड़ बताए जा रहा था।

मुझे लगा कि समूचा घटनाक्रम किसी ‘जीवन दर्शन’ का सन्देश दे रहा है। किसी से सिफारिश करवा कर हम ‘भुट्टे जैसे’ अकड़ जाते हैं। इसी अकड़ में यह भूल जाते हैं कि हम सिफारिश करने वाले की ‘धाक और रुतबा’ ही अपने साथ नहीं ले जा रहे हैं, उसकी प्रतिष्ठा और उसकी छवि भी साथ ले जा रहे हैं। याने, यदि हम ‘विशेषाधिकार प्राप्त’ हैं तो इसके साथ ही साथ ‘जवाबदार’ भी हैं। सिफारिश से मिली सुविधा को हम अपना अधिकार मानने की मूर्खतापूर्ण गलती करते हैं। यह गलती ऐसी होती है जिसकी सजा हमें भले ही न मिले, हमारी सिफारिश करने वाले को अवश्य ही मिलती है।

अब यह तो नहीं बताऊँगा कि ऐसी भूल मैंने अब तक कितनी बार की है। किन्तु अचेतन में भी सचेत रहने का पूरा-पूरा यत्न करूँगा कि ऐसी गलती अब न हो। कभी नहीं हो।

और आप क्या करेंगे? यह तो आप ही तय कीजिएगा। हाँ, मेरी सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना अवश्य कीजिएगा।
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12 comments:

  1. भूल जाते हैं कि हम सिफारिश करने वाले की ‘धाक और रुतबा’ ही अपने साथ नहीं ले जा रहे हैं, उसकी प्रतिष्ठा और उसकी छवि भी साथ ले जा रहे हैं।

    -बिल्कुल सही सीख दी है. लोग तो ऐसा अकड़ जाते हैं कि क्या कहा जाये. सिफारिश करने वाले का नाम खराब कर जाते है. बहुत अच्छा संस्मरण.

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  2. हम छोटे छोटे लाभों के लिए नियम और क्रम तोड़ते हैं। लेकिन उसे तोड़ने के आनंद से लाइन में जा कर सब कुछ लेने का आनंद कुछ और ही है।

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  3. चन्दू भाई का सामाजिक होना और विष्णु भाई जैसी गवाह होने का उस दम्भी व्यक्ति की निष्फलता में योगदान नकारा जा सकता है , क्या ?

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  4. कृपया उपर्युक्त टीप में 'जैसी ' को 'जैसे' पढ़ें । यह होली का मजाक नहीं ,मेरी चूक है । पहले 'जैसी गवाही' लिखने का सोचा था !

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  5. बेचारे चंदु भैय्या , मेरे परिवार मे भी चंदु भैय्या जैसी परेशानी रोज़ झेलते है .अच्छा हुआ मैं इस व्यापार मे नहीं ,होता तो जेल होता दो चार कत्ल करने के बाद

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  6. कई बार हम भी निगोसकर साब की तरह खेद प्रकट कर चुके है।क्या करे? अमेरिका से ज्यादा तो उसका झंडा उठा कर चलने वाला पाक अकड़ता है।

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  7. आप तो कम से कम ऐसा नहीं कर सकते. शुभकामनायें.

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  8. दुनिया में बहुत सारे ऐस लोग हैं , जो माहौल और परिस्थिति को भी नहीं समझ पाते ... दूसरों को इसके कारण मुसीबतें उठानी पडती हैं ... भगवान बचाए ऐसे लोगों से।

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  9. उधार की प्रतिष्ठा पर टिकी हुई ऐसी अकड़ बहुत आम है. कोई किसी चिट्ठी पर, कोई पुरखों पर और कोई अपने पद पर अकड़ता घूम रहा है. चंदू भैया जैसे "न तो न" वाले लोगों की ज़रुरत को ही इंगित करता है यह किस्सा.

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  10. निगोसकरजी अच्छे मानस हैं, शक नहीं।

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  11. निःसंदेह श्रीनिगोस्कर जी निहायत शरीफ़ / सज्जन अधिकारी हैं . आपकी दूरभाष चर्चा - विवरण से
    भी स्पष्ट हुआ .मैं उनकी सदाशयता पर कोई संदेह नहीं कार रहा परंतु कभी-कभी सिफारिशकर्ता का
    कद , प्रशासनिक , राजनैतिक , सामाजिक प्रभाव , ओहदे की धाक / धमक आदि ' सिफारिशी ' व्यक्ति में
    अतिरिक्त ( अनावश्यक ) ऊर्जा का संचार कार देती है जिसकी परिणति के साक्षी आप हैं .

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