पहला वास्तविक धार्मिक फतवा

(या तो मेरे सिस्टम में कोई गड़बड़ है या फिर मेरे नेट कनेक्शन में कि दो दिन से मैं चिट्ठे नहीं पढ़ पा रहा हूँ। कुछ चिट्ठे मैं ई-मेल से प्राप्त करता हूँ। किन्तु वे भी या तो खुल ही नहीं रहे हैं या फिर बहुत अधिक देर बाद, धीमे-धीमे। इसी कारण मुझे नहीं पता कि इन दो दिनों में चिट्ठों की नदियों में कितना पानी बह गया है। मैं खुद को पिछड़ा हुआ अनुभव कर रहा हूँ। इस क्षण मुझे यह भी भरोसा नहीं है कि मेरी यह पोस्‍‍ट प्रकाशित हो ही जाएगी।)

इसे ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ भी कहा जा सकता है या फिर ‘सुबह का भूला शाम को घर लौटा’ भी। वास्तविकता जो भी हो, इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए। इस्लाम को ‘कट्टरता और धर्मान्धता’ का पर्याय बनाए जा रहे वर्तमान समय में यह पहला ‘वास्तविक धर्मिक फतवा’ है। इसे किसी कठमुल्ला-मौलवी ने नहीं, मुसलमानों के हितों की चिन्ता करते हुए उनकी बेहतरी की ईमानदार कोशिशें करने वाले ‘दारुल उलूम देवबन्द’ ने जारी किया है।

लोकसभा चुनावों के लिए जारी किए गए इस फतवे में निम्नांकित चार बातें उल्लेखनीय हैं -

(1) हर मुसलमान वोट अवश्य दे।

(2) फतवे में किसी दल विशेष, व्यक्ति विशेष, धर्म विशेष के लिए वोट देने का आग्रह नहीं किया गया है।

(3) ऐसे उम्मीदवार को वोट देने के लिए कहा गया है जो देश और मुसलमसनों के हित में काम कर रहा हो। फिर भले ही वह किसी भी जाति-समाज का अथवा राजनीतिक दल का उम्मीदवार क्यों न हो।

(4) चूँकि भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपनाई हुई है इसलिए भारत के नेताओं और राजनीतिक दलों पर इस्लाम के पैमाने लागू करना सही नहीं होगा।

इस फतवे में इस्लाम की चिन्ता नहीं की गई है बल्कि मुसलमानों की चिन्ता की गई है और ‘देश’ तथा ‘मुसलमानों’ में से ‘देश’ को पहले रखा गया है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘मुस्लिम पर्सनल ला’ और ‘शरीयत तथा हदीस’ की दुहाइयों को परे धकेल कर साफ-साफ कहा गया है कि लोकतन्त्र के पैमाने ही मुसलमानों पर लागू होंगे, इस्लामिक कानूनों के नहीं। यह फतवा एक ओर जहाँ मुसलमानों को अपने-अपने स्तर पर सोच विचार कर वोट देने की सलाह दे रहा है तो उससे भी पहले वोट जरूर देने की बात कह कर समय की जरूरतों से खुद को जोड़ भी रहा है।

सम्भवतः, वर्तमान काल खण्ड में यह पहला फतवा है जो मुसलमानों को वोट बैंक बनने से बचने की साफ-साफ सलाह दे रहा है। मुसलमान यदि अब तक वोट बैंक बने हुए हैं तो इसका कारण यही है वे ऐसा ही चाहते रहे हैं। क्षुद्र महत्वाकांक्षी और निहित स्वार्थी मुसलमान नेताओं ने भी मुसलमानो को इस स्थिति से मुक्ति दिलाने की कोशिश नहीं की। गिनती के मुसलमान नेताओं ने यदि की भी तो कठमुल्लओं की चीखों के शोर में वे सब के सब अनसुने और असफल कर दिए गए।

केवल देश के मुसलमानों को ही नहीं, देश के तमाम समझदार लोगों को भी इस फतवे का स्वागत करना चाहिए और ‘दारुल उलूम देवबन्द’ का अभिनन्दन करना चाहिए। भेड़ों की तरह, गहरे अँधेरे में हँकाले जा रहे मुसलमानों को नागरिक का दर्जा दिलाने और उनकी राहों को रोशन करने की दिशा में यह फतवा निस्सन्देह साहसी कदम है।

देश के छुटभैया मुल्लाओं-मौलवियों द्वारा, समय-समय पर दिए गए चटपटे फतवों को ‘बेस्ट सेलेबल आयटम’ की शकल में परोसने वाले मीडिया को अपने अब तक की तमाम कारगुजारियों का प्रायश्चित करने का सुन्दर अवसर इस फतवे ने दिया है। मुसलमानों को नागरिक बनाने, धर्म के नाम पर वोट न देकर अपनी मन-मर्जी से वोट देने की सलाह देने वाले इस प्रगतिशील फतवे को अपने-अपने समाचार बुलेटिनों में, अपने-अपने पन्नों में इसे पहला स्थान देना चाहिए और चैबीसों घण्टे इसे चलाते रहना चाहिए।

राजनीतिक दलों को यह फतवा निस्सन्देह नागवार लगेगा किन्तु यदि लोकतन्त्र और वोट बैंक में से किसी को चुनने का सवाल आए तो हमें केवल लोकतन्त्र को ही चुनना होगा।

अपनी दुकानदारियाँ छिन जाने के डर से दहशतजदा कठमुल्ला हल्ला मचाना शुरु करें, उससे पहले इस फतवे के सेहरों की सरगम पूरे देश में, पूरी ताकत से और पूरी आवाज से फैला दी जानी चाहिए।

यही आज की जरूरत है।
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11 comments:

  1. रंगों के पर्व होली पर आपको हार्दिक शुभकामना

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  2. होली में मनों का मैल धुल जाये। इस मौके पर सभी ढेर सारी खुशियां पायें।
    आपको होली की बहुत सी शुभकामनायें...

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  3. इस फतवे का स्वागत है काश हमारे मुस्लमान भाई ही क्यों कोई भी जाति व सम्प्रदाय वोट बैंक न बने |
    होली की शुभकामनाये |

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  4. फतवे का स्वागत है.मुसलमानों में जाग्रति देश के हित में ही रहेगा.होली की शुभकामनायें.

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  5. ये फतवा सच में एक बेहतर पहल है। केवल मुस्लिम ही नहीं हर धर्मगुरु को अपने अनुयायियों को इस तरह की सीख देनी चाहिए।
    दीप्ति।

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  6. १) लोकतन्त्र मे 'फतवा' शब्द से ही घृणा की जानी चाहिये। इस अर्थ में इस फतवे की पोशाक भले ही काफी हद तक 'उचित' व सामयिक लगती हो, इसकी आत्मा अब भी 'इस्लामिक' व पन्दरहवीं शती वाला लग रहा है।

    २) लाख कोशिश करके भी ये 'मुसलमान शब्द' का प्रयोग करने से अपने-आप को नहीं रोक पाये। क्या दुनिया में दो तरह के प्राणी होते हैं? आदमी और मुसलमान ? (चमड़े की थैली, कुक्कुर रखवाला?)

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  7. सही निर्देश है।
    आप को होली की शुभकामनाएँ। आप का नैट चालू हो और पोस्टें पढ़ पाएँ। वरना होली की बहार से वंचित रह जाएँगे।

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  8. होली मुबारक।
    अव्वल तो फतवा संस्कृति ही विकृत है। पर इस तरह का फतवा फिर भी स्वीकार्य है - कम से कम यह तो नहीं कहता कि फलाने को वोट दो!

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  9. वैसे अनुनाद जी ने अपनी टिप्पणी में बिल्कुल सही कहा है कि लोकतंत्र में 'फतवा' जैसा शब्द होना ही नहीं चाहिए......ये फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय है.

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  10. चलिए, लीक से हट के फतवा जारी किया. लेकिन पर्यास अच्छा है, शायद हमारे मुस्लिम भाई इस बार मुसलमान मानसिकता से उठ के भारतीय पहले हो कर वोट तो दें, देश अपने आप बदलेगा . यही समय की आवश्यकता है, तथा जागरूक , देशभक्त व शिक्षित मुस्लिम इस काम को आगे बढाएं !

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