पुरातत्व मेरा विषय नहीं है। किन्तु पुरावशेष देखना अच्छा लगता है - भले ही मैं न तो उन्हें जान पाऊँ और न ही उनका महत्व। गणित और इतिहास मेरे लिए सदैव ही ‘भयानक’ विषय रहे और पुरातत्व तथा इतिहास का रिश्ता तो चोली-दामन का है! इसलिए, मैं इतना भर जान लेता हूँ कि फलाँ गाँव/कस्बे में पुरावशेष हैं और मौका मिले तो उन्हें देख भी लेता हूँ। बस। अब इसे मेरी मूर्खता समझा जाय या अपनी विरासत के प्रति आपराधिक उपेक्षा भाव। मैं ऐसा ही हूँ। इस विषय में जो ‘थो ऽ ऽ ऽ ड़ी सी रुचि’ बनी है उसके लिए आदरणीय राहुलसिंहजी जिम्मेदार हैं। उसके लिए मुझे दोषी न समझा जाए।
सो, जब दो दिन पहले बदनावर गया और मालूम हुआ कि वहाँ कुछ पुरावशेष हैं तो देखने चला गया।
बदनावर मेरे कस्बे से, इन्दौर के रास्ते पर चालीस किलोमीटर दूर है। मुख्य सड़क से दो किलामीटर अन्दर जाना पड़ता है बदनावर पहुँचने के लिए। यहाँ से, बाजबहादुर-रूपमती वाला माण्डू, पचास किलोमीटर पड़ता है। यह धार जिले में आता है। तहसील मुख्यालय है और सम्पन्न गाँवों से जुड़ा, प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है।
बदनावर कस्बे में और इसके आसपास काफी पुरा सम्पदा बिखरी पड़ी है। कस्बे में घुसते ही एक काफी प्राचीन, बहुत बड़ा मन्दिर मिलता है। संयोगवश मैं इस मन्दिर में न तो जा पाया और न ही इसके चित्र ले पाया। बस, पास से निकल आया। किन्तु मन्दिर आकर्षक है। केवल उसी के लिए एक बार फिर बदनावर जाऊँगा।
बदनावर से लगभग पॉंच किलोमीटर दूर, नागेश्वर महादेव मन्दिर जाना हुआ। कष्टवाली बात यह रही कि इस मन्दिर के बारे में बतानेवाला कोई नहीं था। इस मन्दिर का बाह्य स्वरूप जरूर आधुनिक हो गया है किन्तु अन्दरवाला हिस्सा लगभग जस का तस बना हुआ है।
यहाँ जन सामान्य का आना-जाना बहुत ही कम है। लोग तभी आते हैं जब उन्हें यहाँ आना पड़ता है। बदनावर के श्री शेखर यादव ने इस मन्दिर के पास ही ‘शहीद गैलरी’ बनाई है। मैं उसे ही देखने गया था। यह मन्दिर तो मेरे लिए बोनस रहा।
यह मन्दिर पुरामहत्व का तो है ही, इसकी अपनी ऐतिहासिकता भी है। पुरा प्रमियों के लिए यह पोस्ट सूचना या निमन्त्रण मात्र है।
इसी नागेश्वर महादेव मन्दिर के चार चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं।
मन्दिर का बाह्य चित्र
मन्दिर में स्थापित शिव लिंग
वही शिव लिंग दूसरे कोण से
मन्दिर के मण्डप की शिल्प-सज्जा देखते ही बनती है। मण्डप में उकेरी गई मूर्तियों में से नौ मूर्तियाँ चोरी हो गई हैं। चित्र में एक मूर्ति दिखाई दे रही है और आसपास की, चोरी हो चुकी दो मूर्तियों की खाली जगह आसानी से देखी जा सकती है।
आपकी भी रुचि शीघ्र ही विकसित हो जायेगी।
ReplyDeleteगजब का चित्र और सीधी जानकारी सहित आपका न्यौता अच्छा लगा .शुभ प्रभात ....
ReplyDeleteबदनावर में प्रवेश करते समय जिस मन्दिर को आपने छोड़ दिया उसके बारे में किवदन्ती है कि वो मन्दिर कही आसमान से उड़ते हुए जा रहा था एवं वहाँ अवस्थित हो गया। बदनावर के समीप लगभग 40-50 कि.मी. मुगेंला फन्टे से यदि आप गाजनोद की तरफ जाए तो वहाँ एक बहुत पुरातत्वीय महत्व का सुन्दर दर्शनीय मन्दिर है। कभी मौका मिले तो जरुर जाए।
ReplyDelete'उस' मन्दिर को मैंने छोड नहीं दिया। आप एक बार फिर ध्यान से पढने की कृपा करें - मैंने उसका उल्लेख किया है और कहा है कि 'केवल उसे देखने के लिए' एक बार फिरा बदनावर जाऊँगा।
Deleteआपने मुंगेला-गाजनोद के जिस मन्दिर के बारेमें बताया है, वहॉं भी जाने की कोशिश करूँगा।इस सूचना के लिए धन्यवाद डॉक्टर साहब।
फेस बुक पर श्री रवि कुमार शर्मा, इन्दौर की टिप्पणी -
ReplyDeleteबदनावर बस स्टैंड के पहले लेफ्ट मे एक मंदिर मैं ने देखा है? लेकिन वो प्राचीन दिखा, ये शायद दूसरा होगा ।
फ़िर तो रतलाम के आसपास और रतलाम के मंदिरो और पुरातात्विक स्थलों की जानकारी की प्रतीक्षा है ।
ReplyDeleteमोबाइल केमरे ने काफी-कुछ आसान कर दिया है। जब भी मौका मिलेगा, सामग्री प्रस्तुत करूँगा ही। किन्तु 'जानकारी'नहीं दे पाऊँगा। केवल 'सूचना' ही दे पाऊँगा क्योंकि पुरातत्व में मेरी रुचि शून्यवत है और जानकारियॉं केवल वही ले पाता है जिसमें इसके लिए जिज्ञासा और धैर्य हो। मैं वह 'सुपात्र' नहीं।
Deleteपवित्र और दर्शनीय. (जिम्मेदारी सर माथे, आभार.)
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