निजी स्कूलों की कुछ बातें मुझे बहुत ही बुरी लगती है। एक तो यह कि वे जानबूझकर बच्चों को इतना होम वर्क देते हैं कि अकेला बच्चा उसे करने में असमर्थ हो जाता है और उसे अपने माता-पिता की सहायता लेनी ही पड़ती है। स्कूलवालों की मंशा भी यही होती है - पालकों को अनुभव कराना कि उनके उनके बच्चे को कितना पढ़ाया जा रहा है। दूसरी बात जो मुझे इतनी ही बुरी लगती है - प्रोजेक्ट के नाम पर पालकों पर भारी-भरकम आर्थिक बोझ डालना। ये प्रोजेक्ट ऐसे उलझे हुए और खर्चीले होते हैं कि उससे कुछ सीखने के बजाय उस प्रोजेक्ट को कैसे भी पूरा करके उससे मुक्ति पाना, बच्चे का (और उसके माता-पिता का) लक्ष्य बन जाता है।
किन्तु इस सन्दर्भ में मैं, कल एक अच्छे, सुखद अनुभव से गुजरा।
मैं चाँदनीवालाजी के यहाँ बैठा था। उनका फोन घनघनाया। उनकी बातों से लगा कि कोई उनसे मिलने के लिए आना चाहता है। उसे जवाब देते हुए बोले - ‘अभी तो एक मेहमान बैठे हैं। आधे घण्टे बाद, फोन करके आ जाना।’ सामनेवाले को दिया गया उनका यह उत्तर यह मेरे लिए साफ-साफ सन्देश था। किन्तु भाषा को लेकर चल रही हमारी बात में आधा घण्टा कब निकल गया, मालूम ही नहीं हुआ। उनका फोन फिर घनानाया। इस बार बोले - ‘हाँ। हाँ। आ जाओ।’ सुनकर मैं उठने को हुआ तो मुझे रोकते हुए बोले - ‘रुकिए। आप एक अच्छे प्रसंग का आनन्द लेकर जाइए।’
पाँच मिनिट भी नहीं हुए कि सात बच्चियों के साथ एक सज्जन प्रकट हुए। मालूम हुआ कि वे सातों बच्चियाँ एक निजी स्कूल की, आठवीं कक्षा की छात्राएँ हैं और चाँदनीवालाजी का साक्षात्कार लेने आई हैं। इतनी छोटी बच्चियाँ और सबको एक साथ चाँदनीवालाजी का साक्षात्कार लेना है! खुद चाँदनीवालाजी को बात समझ नहीं आई। अब मुझे लगा कि मुझे रोकते समय खुद चाँदनीवालाजी को पूरी बात मालूम नहीं हो पाई थी। बच्चियों ने बताया कि उनकी कक्षा के समस्त बच्चों को, नगर के कवियों से साक्षात्कार लेने का प्रोजेक्ट दिया गया है। इस क्रम में वे प्रो. रतन चौहान और मालवी के लोक कवि पीरुलालजी बादल के साक्षात्कार ले चुकी हैं। प्रो. रतन चौहान ने ही चाँदनीवालाजी का नाम-पता, फोन नम्बर इन बच्चियों को दिया था। जानकर हम दोनों को ताज्जुब भी हुआ और अच्छा भी लगा।
बच्चियाँ अपने प्रश्न लिख कर लाई थीं और देख-देख कर प्रश्न पूछ रहीं थीं। किन्तु दो बच्चियों ने प्रश्नों में से प्रश्न निकाल लिए। यह देखकर हम दोंनों को और अच्छा लगा। घण्टा भर से अधिक समय तक वे बच्चियाँ चाँदनीवालाजी से बातें करती रहीं। लिख कर लाए सवालों के बीच ही ‘विधा का अर्थ क्या होता है, तुकान्त-अतुकान्त कविता क्या होती है, दोनों में क्या अन्तर होता है, गेय-अगेय का अर्थ और अन्तर क्या होता है’ जैसी कुछ और महत्वपूर्ण बातें भी सामने आईं। चाँदनीवालाजी ने अपनी एक सस्ंकृत-कविता का सस्वर पाठ किया। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर बच्चियों द्वारा पूछे गए सवालों से मुझे भी चाँदनीवालाजी के बारे में कई जानकारियाँ पहली बार मिलीं। बच्चियों ने जब उनसे उनकी माँ का नाम पूछा तो चाँदनीवालाजी अनायास ही भावुक हो गए। विगलित स्वरों में बोले - ‘किसी ने पहली बार मुझसे मेरी माँ का नाम पूछा।’
चॉंदनीवालाजी से सवाल पूछती बच्चियॉं
जाने से पहले चाँदनीवालाजी ने बच्चियों से आग्रह कर उनके साथ फोटो खिंचवाया। बच्चियों ने उनके ऑटोग्राफ लिए।
चॉंदनीवालाजी ने आग्रह कर बच्चियों के साथ फोटो खिंचवाया
बच्चियों को ऑटग्राफ देते हुए चॉंदनीवालाजी
बच्चियों के जाने के बाद हम दोनों, निजी स्कूलों के चाल-चलन में आए इस अनपेक्षित किन्तु सुखद बदलाव पर चर्चा करते रहे। यह सचमुच में ‘शिक्षा’ तो थी ही, अपने नगर के साहित्यकारों से मिलने का, उनसे बात करने का एक सुन्दर और दूरगामी प्रभाववाला अवसर भी इन बच्चियों को उपलब्ध कराया गया था। ऐसे उपक्रम बच्चों को अपनी साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं से परिचित कराने का श्रेष्ठ माध्यम होते हैं। यह ऐसा प्रोजेक्ट था जिसमें बच्चों के माता-पिता पर एक पाई का आर्थिक वजन नहीं पड़ा। इसके विपरीत, बच्चे सचमुच में ‘सम्पन्न और समृद्ध’ ही हुए। ऐसे प्रोजेक्ट बच्चों के व्यक्तित्व विकास में सचमुच में सहायक होते हैं।
चाँदनीवालाजी ने और मैंने ईश्वर से एक साथ प्रार्थना की - निजी स्कूलवालों को ऐसी ही बुद्धि देना ताकि बच्चे अपने साहित्यकारों से परिचित हो सकें, अपनी इस विरासत को जान सकें, समझ सकें।
यह तो बच्चों के लिये सोने पर सुहागा रहा, वैसे इस तरह के प्रोजेक्ट बहुत ही कम दिये जाते हैं.. यहाँ पर बच्चों को हिन्दी में निबंध लिखने के लिये दे दिया जाता है.. परंतु अभिभावकों का हिन्दी में हाथ तंग होने से आसपास के लोग हमारा ही सहारा ढूँढ़ते हैं.. हालांकि हम उन्हें निराश नहीं करते.. हमेशा तत्पर रहते हैं.. परंतु अभी भी उन्हें ऐसा लगता है कि वे हमें परेशान करते हैं..
ReplyDeleteबहुत सही जी, इस के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों, चिकित्सकों, सभी बेहतर प्रोफेशनलों और बीमा करने वालों का भी साक्षात्कार लेना चाहिए।
ReplyDeleteरचनात्मकता को बढ़ावा दें, स्वयं ही करने को उत्साहित करें।
ReplyDeleteसुन्दर प्रयास अपनी जगह सुन्दर समालोचना संग उसका व्यापक प्रसार के लिए आपको साधुवाद ....
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है
ReplyDeleteवाकई बहुत सार्थक प्रोजेक्ट दिया गया बच्चों को .... इस बहाने हम भी चंदनीवाला जी से परिचित हुये ।
ReplyDeleteशुभ-संकेत,कहीं से तो शुरूआत हुई,हिंदी के पुनःजन्म की.
ReplyDeleteनिजी स्कूल और छात्राओं का यह प्रयास वंदनीय है । दूसरे स्कूल वालों को इससे सीख लेना चाहिए ।
ReplyDelete