भारतीय जीवन बीमा निगम की मेरी शाखा के एम पूर्व शाखा प्रबन्धक श्री हरिश्चन्द्र जोशी का, कुछ दिनों पहले दिया एक नुस्खा मैंने आज आजमाया। कोई बारह घण्टे पहले आजमाया यह नुस्खा मुझे ‘एक में तीन’ जैसा लग रहा है।
आप भी इसे जानिए।
जोशीजी की कार में बैठा तो जानी-पहचानी, सुखद गन्ध नथुनों में भर आई। लगा, किसी मन्दिर के आँगन में आ गया हूँ। किन्तु गन्ध नहीं पहचान पाया। जोशीजी से पूछा तो बोले - ‘ये? ये तो कपूर है।’ भला, कार में कपूर का क्या काम? जोशीजी ने बताया कि वे दुर्गन्धनाशक (डीऑडोरेण्ट) के स्थान पर कपूर का उपयोग करते हैं। यह दुर्गन्धनाशक तो है ही, कीटाणुनाशक भी है और रंगीन-चमचमाते पेकिंगवाले मँहगे दुर्गन्धनाशकों की तुलना में अत्यधिक सस्ता है।
कल अपने घर के शौचालयों और स्नानघरों की सफाई करते-करते जोशीजी की बात याद आ गई। शाम को देशी कपूर खरीदी और आज सुबह शौचालयों और स्नानघरों में उसके कुछ टुकड़े रख दिए। यहाँ तीनों चित्र उन्हीं टुकड़ों के हैं।
आज सुबह से मेरा पूरा घर इसी देशी कपूर से महक रहा है। लगता है, मैंने कुछ अधिक ही मात्रा में रख दी है। गन्ध अच्छी लगी तो एक टुकड़ा मैंने अपनी टेबल पर भी रख लिया है।
देशी कपूर मुझे चालीस रुपयों की एक सौ ग्राम मिली है। मात्रा देखकर अनुमान लगा रहा हूँ कि कम से कम चार माह तो आसानी से चल जाएगी।
बाजार में मिलनेवाले दुर्गन्धनाशक एक ही काम करते हैं - दुर्गन्धनाशक का। जबकि देशी कपूर तीन काम करता है और पेकिंगवाले दुर्गन्धनाशकों से काफी सस्ता भी है।
खेरची बाजार में एफडीआई के प्रवेशवाले माहौल में और मँहगाई के इस जमाने में मुझे यह ‘उपभोक्ता की शुद्ध बचत’ की सुखद अनुभूति दे रहा है।
वाह आईडिया गजब का है ।
ReplyDeleteसुक्खड़ छिड़कते तो और अच्छा लगता ।
ReplyDelete'बैरागी' के बस की बात नहीं 'सुक्खड' खरीदना। छिडकना तो सपनों की बात हो गई। कोई 'शर्मा'-शर्मी में भेंट दे दे तो भी छिडकने की हिम्मत नहीं होती। वह वापरने में ही'सुक्खड' है, वर्ना खरीदने में तो 'दुक्खड' ही है।
Deleteअभी जाकर कपूर लाते हैं, सुन्दर उपाय।
ReplyDeleteफेस बुक पर श्री गोपाल सिंह नरूका की टिप्पणी -
ReplyDeleteअच्छी खोज।
फेस बुक पर श्री ओम प्रकाश तिवारी, इन्दौर की टिप्पणी -
ReplyDeleteपढकर ही मस्त खूशबू आ गई है। कल तो पूरे घर में मिलेगा। आपकी सकारात्मकता को साधुवाद।