श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की तेरहवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की तेरहवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
लहद से मैयत मरी
समर्पित किया गया है।
लहद से मैयत मरी
लहद से मैयत मेरी वापस निकालेंगे रकीब
इस लहदबाजी में खुद को मार डालेंगे रकीब
वो तो मैं था जिसने उनको रक्खा अब तक बाशऊर
पगड़ियाँ अब तो खुदा तक की उछालेंगे रकीब
आशियाँ मैंने बनाया आसमाँ से जूझकर
हो न हो अब आशियाँ में साँप पालेंगे रकीब
साकी-ओ-मीना वही मय-ओ-मयखाना वही
देख लेना मुझ से ज्यादह जाम ढालेंगे रकीब
कत्ल करके मेरे कातिल मत जला घी के चिराग
इन चिरागों से चमन अपना जला लेंगे रकीब
या खुदा दे दे उन्हें मेरा खूँ, मेरा जुनूँ
वर्ना अपने खून में पानी मिला लेंगे रकीब
-----
‘ओ अमलतास’ की बारहवीं कविता ‘ओ किरणों! कंचन बरसाओ’ यहाँ पढ़िए
‘ओ अमलतास’ की चौदहवीं कविता ‘मुरझा गये कमल’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
-----
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
-----
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.