सच बोलने से बाप नहीं मरता



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’ 
की पन्द्रहवीं कविता 

यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को 
समर्पित किया गया है।


सच बोलने से बाप नहीं मरता

लाख कहो तुम उसे निकम्मा
पर मेरी नजर में वह कम्मा है, कमेला है
तुम्हारे और मेरे-जैसे
करोड़ों निकम्मों की भीड़ में
जोखिम और जलाल लिये वह
कितना अकेला है?

जी हाँ,
मैं बात कर रहा हूँ
मेरे, आपके, इनके, उनके, तुम्हारे
या और किसी के बेटे की
जो कि आपकी, इनकी, उनकी, मेरी और तुम्हारी
हाँ, न जाने किन-किन की
नजरों में गुण्डा है, आवारा है।

सही हो सकते हैं आप
तो भी वह आप सबसे मुझे
ज्यादा प्यारा है।

उसकी तरफ से एक
सवाल पूछूँ?
बुरा तो नहीं मानेंगे?
उसकी आवारगी में दहकती उत्कट ऊर्जा को
अपने उत्तर के बाद तो
सही पहिचानेंगे?

याद है आपको
कभी आपके आकाश की छाती
मिराज और सेबर जेट जला रहे थे?
तब क्या कर रहे थे आप और हम?
केवल भाषणों का भेभूका नहीं चला रहे थे?
जी हाँ, उस लहू-लुहान आसमान को
तब अपनी बाँहों में लिया था
किसी कमेले राजकुमार ने
वह था मेरा, आपका, इनका, उनका
तुम्हारा या और भी उनका
बेटा।

जी हाँ, वही गुण्डा, वही आवारा।
तब उसी ने नेट बनाया
उसमें खुद बैठ कर उसको उड़ाया
और फिर लावे-भरे आकाश के
आँगन में सेबर जेट से लड़ाया।
गवाह है इतिहास कि उसने
उस दुर्दम्य दानव को आनन-फानन
मार गिराया।
वह तुम नहीं, तुम्हारा बेटा
वही गुण्डा आवारा ही है
जिसने तुम्हें विजेता का बाप बनाया।
और तुम हो कि उसे गुण्डा कहने पर तुले हो?
आवारा कहकर कर रहे हो उसे अपमानित।

याद रखो पराक्रम नहीं होता कहीं से आयातित।
वह तुम्हारे पालने में पलता है।
पुसता है और परवान चढ़ कर
प्रभावित करता है तुम्हारे खून को
और एक तुम हो जो
आवारा कहते हो इस
जयजयवन्ती गाते जुनून को?
कसैला मत करो अपने मुँह को
एक सवाल और रौंद देगा
तुम्हारी अकर्मण्यता के ढूह को।

वो जो नदी है न?
तुम्हारे वेद, पुराण और कथा-कीर्तनों में बहती है
हो सकती है वह गंगा, जमना, सरस्वती,
कृष्णा, कावेरी, झेलम, ब्रह्मपुत्र, रेतम, ईडर,
शिवना या और किसी नाम से।
पता है कितने बरसों से बह रही है?
उसकी कुँवारी कछारों में चलाकर हल
किसने उगाया था पचास या सौ
कुन्टल धान एक एकड़ में?
क्या रखा है अब इस झूठी हेकड़ में?
तुम्हारी भूख से तुम नहीं
लड़ा है तुम्हारा आवारा और वही गुण्डा बेटा।

इस नटखट पीढ़ी को आसान है गाली देना
गुण्डा या आवारा कहना,
पर इसके वज्र हाथ, चेतन मस्तिष्क
और वेगवान प्राणों का
अपमान करने का कोई
जेठा या हेठा अधिकार नहीं है।

मेरे स्वयंभू!
हे मेरे हेकड़ प्रभु!
तुम्हारी वन्दना में
अब और क्या कहूँ?
इस तेजस पीढ़ी को काम दो
इसके पौरुष से काम लो
सीखो इससे प्यार करना।
सीना तान के कहो कि
ये हमारे बच्चे हैं
हमसे अधिक कर्मठ, कमेले, कर्मण्य और
यकीनन हमसे हर बात में अच्छे हैं।
आर्यभट्ट और पोकरण के धमाके का
विरद मेरी तरह तुम भी गाओ
इनको अपना बेटा कहने में मत लजाओ।

सच बोलने से बाप नहीं मरता
पर बेटा जी जाता है
और जिन्दा बेटा
समूचे इतिहास का कालकूट
एक ही घूँट में पी जाता है!
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संग्रह के ब्यौरे

रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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