हम



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की छठवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


हम

आँखें सिहासनों पर
और कान भाषणों पर
एक हाथ इसकी
और दूसरा उसकी जेब में
घुटने जमीन पर
और पाँव किसी के पेण्ट में
मुँह पर केवल पेट
ओर पेट के हजार मुँह
कुल मिलाकर यह है
मेरा चित्र ।
याने कि तुम्हारा इनका-उनका और
उनका भी कि जो यहाँ नहीं हैं।
याने कि कहाँ नहीं हैं?
चित्र क्या
यह है व्यंग्य-चित्र
ठीक है न मित्र?

अब रहा दिमाग
सो उसकी मत पूछो
दिमाग में भ्रम या सम्भ्रम
या विभ्रम और विकृतियाँ
कितनी ही कड़वी-कसैली स्मृतियाँ
इस आन्तर और बाह्य को मिलाकर
जो बने, आप उसे इन्सान या शैतान
कुछ भी कह सकते हैं
और हिम्मत हो तो
शीशे में अपने आपको देख कर
इसी को हिन्दुस्तान कह सकते हैं।
मैंने कहा न
हिम्मत हो तो कह सकते हैं
या फिर मेरी ही तरह
चुप रह सकते हैं।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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