श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की सोलहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
‘रेत के रिश्ते’
की सोलहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
मुबारक हो आपको आपका जन्म-दिन
शायद इसीलिये आता है
जनम-दिन कि हेतू, मुलाकाती
अनगिन गिनें हमारे बीते बरस
करें जोड-बाकी
बातें यहाँ की, वहाँ की।
दें शुभ कामना
और बैरी-दुश्मन दें बद्दुआ
कि चलो बैर भँजाने का
एक बरस और कम हुआ।
यहाँ तक तो सब ठीक है।
पर जब बे
याने कि वे सब
जोड़ते हैं मेरी उम्र में तीस बरस
तो खाकर तरस कहते हैं
‘तुम बिलकुल अपने पिता-जैसे दिखते हो!’
और फिर जोड़कर बीस बरस
माँ-जैसा बताते हैं।
लेकिन जब बहुत आत्मीयता पर आते हैं
तो घटा कर तीस बरस
मेरे पुत्र-जैसा कहेंगे।
और कम करके बीस बरस मुझे
बिलकुल मेरी बेटी-जैसा बनाकर रहेंगे।
याने कि
मेरे भूत और भविष्य के बीच में
फैले पड़े हैं पूरे पचास बरस।
ऐसे में जीना वर्तमान को
वह भी तार-सप्तक में
एक जोखिम का काम है।
और इस जोखिम के जख्मों को
शीशे में देखकर खुद पर मुस्कराने का ही
जनम-दिन नाम है ।
मुबारक हो आपको आपका जनम-दिन
बधाइयाँ, और वे भी अनगिन।
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संग्रह के ब्यौरे
रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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