मुरझा गये कमल




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की चौदहवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




मुरझा गये कमल

पहिली किरन के साथ ही मुरझा गये कमल
अल्लाह रे! फिर से फरेब खा गये कमल

शबनम जिसे समझ रहे हैं वो है पसीना
देखिये न किस कदर घबरा गये कमल?

पानी के खानदान पे कीचड़ की फब्तियाँ
तालाब के भरोसे कहाँ आ गये कमल!

सपना था किसी देवता के सिर पे चढ़ेंगे
पर देवता को देख के गश खा गये कमल

रोशनी के पाँव में फिर मोच आ गई
बेनूर सुबह आई तो शरमा गये कमल

एक-एक पंखुरी पे घाव हजारों
अपने ही फैसलों की सजा पा गये कमल
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‘ओ अमलतास’ की तेरहवीं कविता ‘लहद से मैयत मेरी’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की पन्द्रहवीं कविता ‘बड़ा मजा है’ यहाँ पढ़िए 

 


संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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