श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’
की बारहवी कविता
‘कोई तो समझे’
की बारहवी कविता
यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को
समर्पित किया गया है।
(स्व.) श्री संजय गाँधी को
समर्पित किया गया है।
उनका स्थान
उनकी आँखें ढूँढ रही हैं
दरबार में वो जगह
जहाँ वे
(कल के क्रान्ति-गायक होने के नाते)
सीना तान के खड़े होंगे
और तब वे निश्चय ही
कल से अधिक बड़े होंगे।
पर जब उन्हें
उनकी ही परिभाषाएँ
करार देंगी भाँड, चापलूस और दरबारी
तब फिर कौन करेगा
वाह-वाह! बलिहारी! बलिहारी!
मारे ग्लानि के
जब वे करेंगे सिर नीचा
तब भी उन्हें दिखाई देगा
लाल गलीचा।
फिर क्या होगा इन
स्थानापन्न सुविधाभोगियों का?
मात्र विरोध के लिए विरोध में विक्षिप्त
नये-नये राजरोगियों का?
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संग्रह के ब्यौरे
कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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