श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की तेईसवीं/अन्तिम कविता
‘ओ अमलतास’ की तेईसवीं/अन्तिम कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
समर्पित किया गया है।
चाँद से
चाँद! तेरी चाँदनी में घुटता है दम
मेरे गीतों को सूरज का घाम चाहिये
000
माना मैंने तेरा ये इरादा नहीं था
पर इतनी लम्बी रात का तो वादा नहीं था
होती है चरित्रवान भोर ही विकल
बन्धु मेरे! भोर का चरित्र मत बदल
प्राची के सिन्दूर को तरस गई फसल
खिलने को तरस गये हैं प्राण के कमल
सूरज के सातों अश्व हिनहिना रहे
तेरे रथ में जुते मृग को भी आराम चाहिये
मेरे गीतों को सूरज का घाम चाहिये
चाँद! तेरी चाँदनी में घुटता है दम।।
000
अपने अपने नीड़ों में पंछी थक गये
इन झींगुरों के शोर से कान पक गये
पंख चाहते हैं थकन मुक्त गगन की
चोंच चाहती है अगन जलती किरन की
चहचहाना भूल गये जो ये सुरीले
तो ऊषा के हाथ कैसे होंगे रे पीले
तारों की बारात सारी म्लान हो गई
अब भाँवर का लग्न एक ललाम चाहिये
मेरे गीतों को सूरज का घाम चाहिये
चाँद! तेरी चाँदनी में घुटता है दम।।
000
जब तलक थी चाँदनी प्राण का नशा
तब तलक किसी ने कभी कुछ नहीं कहा
पर नशा बदल के अब प्रमाद हो गया
लग रहा है सूर्य कहीं दूर खो गया
भैरवी से पूछने लगी है प्रभाती
क्यों हमें सुहागनें अब नहीं गाती
आरती के दीप का उपहास हो रहा
जय-जयकार को भी कुछ विराम चाहिये
मेरे गीतों को सूरज का घाम चाहिये
चाँद! तेरी चाँदनी में घुटता हैं दम।।
000
मिट्टी का सतीत्व है रवि की आग में
बाँझपना है कहाँ धरा के भाग में
वंश अगर डूब गया कल को बीज का
क्या जलाल होगा तब सती की खीज का
कोख इसकी चलती रहे, फलवती रहे
पयस्विनी की पीढ़ियाँ बलवती रहें
इसके लिये छोड़ दे तू आग सूर्य की
स्पर्श इसे सूर्य का उद्गाम चाहिये
मेरे गीतों को सूरज का घाम चाहिये
चाँद! तेरी चाँदनी में घुटता है दम।।
000
गोरी हो या काली बन्धु! रात, रात है
रात सदा रात रहे यह क्या बात है!
दिन के सिवा कौन है मसीहा रात का
भूल गये रंग तलक हम प्रभात का
कोई चाँदनी को भला कब तलक पिये
अधमरी दिशाओं में किस तरह जिये
करवटें बदल बदल के टूट गया तन
तन से मन को जुड़ने का मुकाम चाहिये
मेरे गीतों को सूरज का घाम चाहिये
चाँद! तेरी चाँदनी में घुटता है दम।।
---
‘ओ अमलतास’ की बाईसवीं कविता ‘फिर भी गा रहा हूँ’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
-----
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
-----
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.