यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
ईश्वर से
जमींदार......!
ओ अविनाशी जमींदार....!
ओ अगम, अगोचर जमींदार.....!
उठ, जाग जरा, सुन समाचार
तेरी उस अलख जगीरी के
जिसका केवल नाम मात्र का मालिक है तू।
पट्टे, खसरे और खतौनी में है तेरी इन्द्राज
पर सचमुच जिसको हाँक-जोतकर बोते हैं तेरे हाली
नौकर-चाकर, मव्वाली
हाँ, हाँ ये हैं समाचार
तेरी उस उर्वर धरती के
जिसमें आज तोड़ते दम हैं
तीन अरब अनबोले पौधे ।
कुछ को खाद नहीं मिल पाया
कुछ को मिला नहीं पानी
कहीं अचानक ओले बरसे
कुछ कुँपलाई नई कोंपलें
बेमौसम लू में झुलसानी
कहीं दाह पड़ गया शीत में
कुछ को पाला मार गया
कहीं मवेशी रखवाले का
बिना बाड़ और बिन बागड़ की तेरी खेती
भर-भर पेट डकार गया ।
जमींदार!
ओ अविनाशी जमींदार!
यह ठकुरसुहाती नहीं,
शिकायत नहीं, नहीं फरियाद है
मैं कवि हूँ
या कि पड़ौसी हूँ तेरा
इसीलिए कहता हूँ
तेरी जागीरी बरबाद है
उठ जाग स्वयं कर रखवाली
खुद मेहनत कर, युग बदल गया
शुक्र, चन्द्र, मंगल से आगे
पाँच तत्व का कुटिल कीट यह
हँसते-गाते निकल गया,
अब धरती उसकी जो जोतेगा
तू अपनी भी कुछ चिन्ता कर
मैं आखिर और कहे देता हूँ
चाहे फिर तू जी या मर
अब तेरे सारे खेत बदलने वाले हैं शमशान में
फिर मत कहना कच्ची फसलें
क्यों आई खलिहान में।
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‘दो टूक’ की सैंतीसवीं कविता ‘लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।
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