आत्म निर्धारण



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ की दूसरी कविता

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।





आत्म-निर्धारण

रोशनी का काम जलना है,
जलेगी।
कालिमा का काम छलना है,
छलेगी।
काम आखिर क्या हमारा है?
इस जलन और इस छलन के बीच
केवल मूक दर्शक ही नहीं हम,
और भी कुछ हैं।
यह आत्म-निर्धारण कसैला काम है
ज्योति-बेला बस इसी का नाम है।
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कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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