श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की सत्रहवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की सत्रहवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
समर्पित किया गया है।
चुप रहो
तकरीर ही तकरीर है, चुप रहो
मामला गम्भीर है, चुप रहो
मामला गम्भीर है, चुप रहो
हर गड़ा मुर्दा उखाड़ा जायेगा
ख्वाब की तामीर है, चुप रहो
शौक से खुद ही गले में बाँध ली
कीमती जंजीर है, चुप रहो
बदचलन कोई नहीं है, ठीक है
बदचलन तकदीर है, चुप रहो
कल सुबह तक फैसला हो जायेगा
ये दवा अक्सीर है, चुप रहो
मसखरों को माफ ही कर दीजिये
इस सदी के पीर हैं, चुप रहो
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‘ओ अमलतास’ की सोलहवीं कविता ‘इन्कलाब है’ यहाँ पढ़िए
‘ओ अमलतास’ की अठारहवीं कविता ‘पूछिये मत’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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