श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की उन्नीसवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की उन्नीसवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
समर्पित किया गया है।
त्यौहार की सुबह
त्यौहार की सुबह ही अगर खुशनुमाँ नहीं
तो और कुछ हैं आप मगर रहनुमा नहीं
तो और कुछ हैं आप मगर रहनुमा नहीं
कल तक थी जिनके काँधों पे यारों की पालकी
ये उनने कहलवाया है, मेरा बयाँ नहीं
कल जो बहाई आपने घी-दूध की नदी
मेरे हुजूर! उसका तो मीलों पता नहीं
तुम दिलजलों ही दिलजलाें में मैं क्या करूँगा
महफिल है या मजाक जहाँ पर शमा नहीं
किरनों के संग आ रही हैं फिर उदासियाँ
सूरज तो कहीं आपका भी बदगुमाँ नहीं?
खामोश मुझे कर न सके यार के सितम
मैं आईना हूँ आपका, बेजुबाँ नहीं
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‘ओ अमलतास’ की अठारहवीं कविता ‘पूछिये मत’ यहाँ पढ़िए
‘ओ अमलतास’ की बीसवीं कविता ‘मन्दिर जिसे समझ रहे हैं’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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