श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की दसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
ठीक-ठीक नाम
‘रेत के रिश्ते’
की दसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
ठीक-ठीक नाम
उन पीढ़ियों को
नकार देता है इतिहास
जिनमें नहीं होता आत्म-विश्वास।
कोई स्थान नहीं देता
वह उस उम्र को अपने पन्नों पर
जो सपने तो देखती है
अपरिभाषित क्रान्ति के,
पर उसे आकार नहीं देती।
याने कि आसन्न को
आधार नहीं देती।
इतिहास एक कुआ है
आग का।
अद्भुत है उसकी जठराग्नि
और पाचन-शक्ति।
बहुत सख्त हैं उसके जबड़े।
गुजरना सबको पड़ता है
उसकी दाढ़ों से
उनसे बचता है
केवल हस्ताक्षर-केवल नाम
उसे भी खाने, चबाने, जलाने और पचाने का
प्रयत्न तो वह बार-बार करता है,
पर वह नाम, वह हस्ताक्षर
अगर ठीक-ठीक हो तो
इस प्रक्रिया में भी
सँवर-सँवर कर उभरता है।
और फिर यह जो ठीक-ठीक है न!
न किसी के मारे मरता है
न इतिहास के बाप से ही डरता है।।
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संग्रह के ब्यौरे
रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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