श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की बारहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
चेतावनी
‘रेत के रिश्ते’
की बारहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
चेतावनी
और फिर यह दीप-बेला
और फिर यह दीप-माला
ज्योति की अँगनाइयों में झिलमिलाता
यह उजाला
लग रहा शायद सभी कुछ
ठीक है और स्वस्थ है।
किन्तु मेरे बन्धु!
चिन्तक-मात्र चिन्ताग्रस्त है।
कालिमा अब भी बराबर
कर रही षडयन्त्र है
राम जाने किस खुशी में
मस्त सारा तन्त्र है।
जो अमावस के जुलूस में
कल तलक थे मुब्तिला
रोशनी को गालियाँ देना था
जिनका सिलसिला,
आज वे सब घुस गये हैं
इस जुलूस में शान से
रोशनी को ये मिटायेंगे
यकीनन जान से।
बीस रुपहले कमल जो
कल खिले हैं ताल में
ये उन्हें ही ले रहे हैं आज अपने जाल में
तुम मूक दर्शक ही रहे तो
क्या कहेंगी पीढ़ियाँ?
पाँव इनके तोड़ दो
तुम खींच लो सब सीढ़ियाँ।
ज्योति के उद्धार का
संकल्प अब तुम ही करो
ज्योतिपुत्राें!
वर्ण-संकर विषधरों से
मत डरो।
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संग्रह के ब्यौरे
रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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