मुझे भीड़ से ऊर्जा मिलती है


राज शेखर व्यास

एक बार, सन् अस्सी में, मैंनेे बालकवि बैरागीजी को दूरदर्शन के स्टूडियो में आमन्त्रित किया। साक्षात्कार मैं ही ले रहा था। बालकवि दादा कविता सुनाते, गाते-गाते असहज हो रहे थे। मेरे तो परिवार का हिस्सा थे! मैंने उनसे सहज ही, ठेठ मालवी में पूछ लिया - ‘कई बात है दादा! आज अपना रंग मे नी हो तम!’ (क्या बात है दादा! आज आप अपने रंग में नहीं हैं!) उन्होंने मालवी मे ही उत्तर दिया - ‘यार नाना! म्हूँ भीड़ को कवि हूँ। मंच को कवि हूँ। मंच वे! सामने लोग वे तो खुराक मले। अणी खाली स्टूडियो में व्हा वात न्हीं अई सके।’ (भाई मेरे! मैं भीड़ का कवि हूँ। मंच का कवि हूँ। मंच हो, सामने लोग हों तो मुझे ऊर्जा मिलती है। इस खाली स्टूडियो में वो बात नहीं आ सकती।) 

मैं समझ गया। तत्काल स्टूडियो की रिकार्डिंग रोकी। आकाशवाणी और दूरदर्शन भवन तब दोनों एक बिल्डिंग में, संसद मार्ग पर ही थे। दोनों के कर्मचारी-अधिकारी बैठाये गए और स्टूडियो खचाखच भर दिया। फिर तो दादा ने ‘तू चन्दा मै चाँदनी’ और अन्य मालवी कविताओं की जो तान भरी कि आनन्द ला दिया। 

बाद में मैंने उन पर पृथक से एक बड़ा कार्यक्रम और बनाया ‘मालवा का लाड़ला: बालकवि’। जिसकी प्रशंसा, सम्पादक प्रभाकरजी माचवे ने ‘चौथा संसार’ में सम्पादकीय लिख कर की थी।

(ऊपर दिया गया चित्र 2007 में, न्यूयार्क में सम्पन्न विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर का है। दादा भोजन कर रहे हैं और मैं उनकी परोसगारी करने को तत्‍पर खडा हूँ।)

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‘दूरदर्शन’ और इलेक्ट्रानिक माध्यम के सुपरिचत व्यक्तित्व श्री राजशेखर व्यास, ‘दूरदर्शन’ के अतिरिक्त महानिदेशक रहे हैं। चर्चित विषयों, व्यक्तित्वों पर इनके बनाए 200 से अधिक वृत्त चित्र प्रसारित हो चुके हैं और अब भी समय-समय पर प्रसारित होते रहते हैं। उज्जैन में जन्मे श्री राज शेखर व्यास की 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दादा से इनका प्रगाढ़ घरोपा रहा है। यह संस्मरण और दोनों चित्र, श्री राजशेखर व्यास की फेस बुक भींत से लिए हैं।


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