फूलों के बदले



 



श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह
‘ललकार’ का सत्रहवाँ गीत







दादा का यह गीत संग्रह ‘ललकार’, ‘सुबोध पाकेट बुक्स’ से पाकेट-बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई। इसीलिए इसके प्रकाशन का वर्ष मालूम नहीं हो पाया। इस संग्रह में कुल 28 गीत संग्रहित हैं। इनमें से ‘अमर जवाहर’ शीर्षक गीत के पन्ने उपलब्ध नहीं हैं। शेष 27 में से 18 गीत, दादा के अन्य संग्रह ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ में संग्रहित हैं। चूँकि, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है इसलिए दोहराव से बचने के लिए ये 18 गीत यहाँ देने के स्थान पर इनकी लिंक उपलब्ध कराई जा रही है। वांछित गीत की लिंक पर क्लिक कर, वांछित गीत पढ़ा जा सकता है।    

फूलों के बदले
  
राजघाट की पावन माटी, सौ-सौ बार शपथ तेरी
फूलों के बदले अब तुझ पर, अरि के मुण्ड चढ़ायेंगे

युग की नींद हराम करी है, कुछ लोहू के प्यासों ने
राजघाट को ललकारा है, ऐटम के रनिवासों ने
(तो) प्रतिशोधी यौवन मचला है, अपना फर्ज निभाने को
लोहू आज बहुत व्याकुल है, सारा कर्ज चुकाने को
युग के तीरथ! बहुत सहा है, तेरी अजय अहिंसा ने
इसीलिए कुछ दिन हिंसा से, युग का रथ खिंचवायेंगे
फूलों के बदले अब तुझ पर.....

तुझ को शीश झुका कर युग को, धोखा दिया पड़ौसी ने
कायरता के कलश उठाये, अब तक की खामोशी ने
लेकिन अब ज्वालामुखियों ने, सभी अबोले तोड़े हैं
और कहारों को गंगा ने, फिर उत्तर में मोड़े हैं
युग के कुंकुम! क्षमा दान दे, इन पागल अंगारों को
अब तक आग बुझाई लेकिन, अब धरती धधकायेंगे
फूलों के बदले अब तुझ पर.....

तिल-तिल तृण-तृण धरती के हित, कोटि-कोटि कट जायेंगे
अरि लोथों से हिम-प्रस्थों के, रीते पथ पट जायेंगे
महास्नान होगा चण्डी का, रक्तोदधि लहरायेगा
जो भी सीमा पार करेगा, कट कर ठोकर खायेगा
युग के केवट! पतवारें रख, हमने थामी तलवारें
पता नहीं इस रक्त-सिंधु के ज्वार कहाँ तक जायेंगे
फूलों के बदले अब तुक पर.....

सिर पर कफन लपेट लिये हैं, फिर तेरी सन्तानों ने
महानाश के आमन्त्रण को, स्वीकारा निर्माणों ने
श्रम-बाला के साथ आज हम, रण-बाला भी वरते हैं
परिणामों की चिन्ता तेरे, पूत भला कब करते हैं
युग के त्राता! राह देखना, उद्भट जब भी लौटेंगे
अरि मस्तक होंगे हाथों में, खाली हाथ न आयेंगे
फूलों के बदले अब तुझ पर.....

तेरी कसम कभी भी हमने, नहीं अवज्ञा की तेरी
लेकिन तुझसे बिन पूछे ही, पड़ी बजानी रणभेरी
आज प्रश्न है तेरी वाणी, मुखर रहे या मूक रहे
शान्ति-कपोत उड़े नभ में या, महानाश की भूख रहे
युग की करुणा! वरद हस्त रख, रणोन्मत्त इन शीशों पर
तुझे झुकाये हैं जो मस्तक, केवल तुझे झुकायेंगे
फूलों के बदले अब तुझ पर.....
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इस संग्रह के, अन्यत्र प्रकाशित गीतों की लिंक - 

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गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया। 

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