नौजवानों आओ रे

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की चौंतीसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




नौजवानों आओ रे

नौजवानों आओ रे
नौजवानों गाओ रे
लो कदम बढ़ाओ रे
लो कदम मिलाओ रे
नौजवानों आओ रे, नौजवानों गाओ रे
ऐ वतन के नौजवानों, इस चमन के बागवानों 
एक साथ बढ़ चलो, मुश्किलों से लड़ चलो
इस महान देश को नया बनाओ रे
नौजवानों आओ रे
धर्म की दुहाईयाँ, प्रान्त की जुदाईयाँ
भाषा की लड़ाईयाँ, पाट दो ये खाईयाँ
एक माँ के लाल, एक निशाँ उठाओ रे
नौजवानों आओ रे
एक बनो, नेक बनो, खुद की भाग्य रेख बनो
पंचशील के हो लाल, तुमसे ये जगत निहाल
शान्ति के लिये जहाँ को गुदगुदाओ रे
नौजवानों आओ रे
माँ निहारती तुम्हें, माँ पुकारती तुम्हें
हँसते मुस्कुराते आओ, श्रम के गीत गाते आओ
कोटि कण्ठ एकता के गान गाओ रे
नौजवानों आओ रे
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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