नये मुल्क की नई जवानी

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की ग्यारहवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




नये मुल्क की नई जवानी

नये मुल्क की नई जवानी
आज हौसला कर तूफानी
जीवन बाँट रही गलियों में
ले लो जीवन दान
मतवाले करते निर्माण
जय-जय मेरा देश महान  
जय-जय है मजदूर किसान

गीत मृत्यु के गाना छोड़ो, प्यार करो जीवन से
देश माँगता जीवन तुमसे, अर्पण कर दो तन-मन से
मानवता का मूल्य न भूलो, 
मानव की ममता में सिमटे
कुदरत और इंसान
मतवाले करते निर्माण

माहलों वालों हाथ बढ़ाओ, कुटिया को भी महल बनाओ
बेबस, बेकस, लाचारों पर, रहम-करम थोड़ा बरसाओ
दौलत से बढ़ कर सेवा है, 
सेवा की शीतल ज्वाला में
पिघल गये पाषाण
मतवाले करते निर्माण

यौवन फूट रहा धरती का हल वालों की हिम्मत से
माँग सिन्दूरी हो जायेगी, दिलवालों की दौलत से
गाये कजरिया और ददरिया, 
वन, उपवन, खलिहान
मतवाले करते निर्माण

नये खून ने ली अँगड़ाई युग ने पलटा खाया
नहीं रहे बेकार कोई अब मुल्क मेरा मुसकाया
गौरी शंकर को भी झुकादे, 
होगी लगन महान
मतवाले करते निर्माण

बाजू पर विश्वास करो तुम श्रम से शर्म न खाओ
नई जिन्दगी दो भारत को आगे कदम बढ़ाओ
दीवानों! दम तब ही लेना, 
हँस दे हिन्दुस्तान
मतवाले करते निर्माण
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


 





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