आई उजियारी

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की छब्बीसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को 
समर्पित किया गया है।




आई उजियारी

आई उजियारी गई अँधियारी बीत
गाओ रे गाओ, गाओ जीवन के गीत
ओ ऽ ऽ ऽ गाओ रे गाओ रे, गाओ रे
जीवन के गीत गाओ
जीवन के गीत गाओ
आई उजियारी गई अंधियारी बीत
आओ रे आओ, गाओ जीवन के गीत

हाथ में तिरंगा लिये, समता की गंगा लिये
हाट-बाट, घाट चलो, ले के यही ठाठ चलो
ओ ऽ ऽ ऽ बिछुड़ों को साथ में मिलाओ रे.
भाई से भाई की बढ़ती रहे प्रीत
आओ रे आओ, गाओ जीवन के गीत
आई उजियारी....
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भारत के लाल हैं हम, जलती मशाल हैं हम
श्रम की आरती करेगें, मोतियों से घर भरेगें
ओ ऽ ऽ ऽ मेहनत औ’ मस्ती लुटाओ रे
गगरी पसीने की जाए ना रीत
आओ रे आओ, गाओ जीवन के गीत
आई उजियारी.....
 
धरती और आसमान, हिन्द क्या सकल जहान
अपने साथ घूम जाएँ, गूँज जाएँ,ं झूम जाएँं
ओ ऽ ऽ ऽ भटकों को रास्ता दिखाओ रे
लहराये, गहराये शान्ति संगीत
आओ रे आओ, गाओ जीवन के गीत
आई उजियारी.....

ललनाएँ और लाल, करके ऊँचे भाल
धूप-धूप, छाँव-छाँव, शहर-शहर, गाँव-गाँव
ओ ऽ ऽ ऽ सेवा की डोली पहुँचाओ रे
साधक सपूतों की होती है जीत
आओ रे आओ, गाओ जीवन के गीत
आई उजियारी.....
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(गुजराती गरबा की एक लोक-धुन पर आधारित रचना।)
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)









यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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