कौन हेमन्त करकरे?


इस पोस्ट की विषय-वस्तु मुझे अभी-अभी फेस बुक से मिली है।

यह चेहरा किसी परिचय का प्रार्थी नहीं। 26 नवम्बर 2008 के मुम्बई आतंकी हमले के अमर शहीद हेमन्त करकरे को न जानना, किसी आत्म-धिक्कार से कम नहीं है।

अमर शहीद हेमन्त करकरे ने एलआईसी और एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी से 25-25 लाख रुपयों की बीमा पॉलिसियाँ ले रखी थीं।

श्री करकरे की शहादत की खबर मिलते ही एलआईसी के लोग सक्रिय हुए और एलआईसी की दादर शाखा ने, करकरे की शहादत के पाँचवें दिन ही, बीमे की रकम, उनकी पत्नी को भुगतान कर दी।

इसके विपरीत, एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी की दादर शाखा ने दावा अस्वीकार कर, दावे की रकम भुगतान करने से इंकार कर दिया।

दावा खारिज करने के पीछे एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी ने कारण बताया कि श्री करकरे ने, खुद को बचाने के लिए अपेक्षित पर्याप्त सावधानी नहीं बरती। कम्पनी के अनुसार, श्री करकरे जानबूझकर उस इलाके में घुसे जहाँ गोलीबारी हो रही थी। वे जानते थे कि  ऐसा करने से उनकी जान जोखिम में आ जाएगी। फिर भी उन्होंने ऐसा किया। कम्पनी की नजर में यह अनुचित कृत्य था और इसीलिए कम्पनी ने दावा अस्वीकार कर, भुगतान करने से इंकार कर दिया।


प्रसंगवश उल्लेख है कि एलआईसी का दावा भुगतान प्रतिशत 98.6 है जो विश्व में सर्वाधिक है।

प्रसंगवश यही जिज्ञासा भी समानान्तर रूप से जागी कि राष्ट्र और शहीदों के नाम पर अपनी दुकानें चलानेवालो में से किसी का ध्यान इस ओर  अब तब नहीं गया। शायद जाएगा भी नहीं। क्योंकि ऐसे कामों के लिए तो केवल सरकार पर ही दबाव बनाया जा सकता है। किसी निजी बीमा कम्पनी पर भला किसी का क्या जोर!

इस मामले में हेमन्त करकरे के लिए बोलने की फुरसत अभी किसी को नहीं है।


स्पष्टीकरण भी और क्षमा-याचना भी

इस मामले में, एलआईसी से जुड़े एकाधिक मित्रों ने  मुझे व्यक्तिशः फोन कर  वही  बात  सूचित  की जो स्वप्न मंजूषाजी ने अपनी टिप्पणी में कही थी कि एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी ने, दावा  खारिज  करने के दो दिनों बाद दावा भुगतान कर दिया था।

इन मित्रों ने बताया कि इण्डियन एक्सप्रेस के, 12 फरवरी 2013 वाले अंक में इस बारे में विस्तृत समाचार प्रकाशित हुआ था जिसमें, एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी के अभिलेखों का सन्दर्भ देते हुए कहा गया था कि इस कम्पनी ने, दो दिनों बाद दावा भुगतान कर दिया था। इसी समाचार में, इस कम्पनी द्वारा, एलआईसी को मानहानि का नोटिस देने की बात भी कही गई थी।

जैसा कि टिप्पणियों में आप पाएँगे - स्वप्न मंजूषाजी की टिप्पणी मुझसे, गलती से डिलिट हो गई थी जिसे मैंने अपने मेल बॉक्स से लेकर, स्वप्न मंजूषाजी के नाम सहित, अपनी ओर से प्रकाशित किया था। इतना ही नहीं, टिप्पणी के गलती से डिलिट किए जाने की सूचना मैंने स्वप्न मंजूषाजी को देते हुए उनसे पूछा था कि डिलिट की गई टिप्पणियों को यदि पुनः प्राप्त किया जा सकता हो तो वैसा रास्ता बताएँ। प्रत्युत्तर में स्वप्न मंजूषाजी ने कृपापूर्वक अपनी टिप्पणी फिर से अंकित की जिसे टिप्पणियों में पढ़ा जा सकता है। 

इसी प्रकार श्री शिवम मिश्रा की टिप्पणी के प्रत्युत्तर में की गई मेरी टिप्पणी भी मेरा आशय प्रकट करती है जिसमें मैंने अपनी चूक स्वीकार करते हुए उसके लिए समस्त सम्बन्धितों से बिना शर्त, सार्वजनिक क्षमा याचना की है।

मेरी इस पोस्ट का लक्ष्य, बीमा कम्पनियों का व्यवहार नहीं अपितु, करकरेजी के परिवार के प्रति सामाजिक व्यवहार के माध्यम से हमारे दोहरे आचरण को रेखांकित करना था। यह संयोग ही है कि मैं एलआईसी का एजेण्ट हूँ और मेरी इस पोस्ट से मेरी इस सम्बद्धता को जोड़ा जाना स्वाभाविक ही था।

मैं स्पष्ट कर रहा हूँ कि किसी भी बीमा कम्पनी के व्यवहार पर टिप्पणी करना, मेरा लक्ष्य बिलकुल भी नहीं था।

मेरी इस पोस्ट से यदि एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी के प्रबन्धन को, इससे जुड़े किसी भी महानुभाव को, इसके सहयोगियों/समर्थकों/शुभ-चिन्तकों को यदि किसी भी प्रकार से कोई भी असुविधा हुई हो, किसी अवमानना की अनुभूति हुई हो, कोई पीड़ा पहुँची हो या ऐसा ही और कुछ भी हुआ हो तो मैं समस्त सम्बन्धितों से, बिना शर्त, अपने अन्तर्मन से सार्वजनिक क्षमा याचना करता हूँ।

मेरी इस क्षमा-याचना के बाद भी यदि किसी को मेरी इस पोस्ट से कोई असुविधा हो तो कृपया सूचित करें ताकि मैं खुद को सुधार सकूँ। 

14 comments:

  1. थर्रा देने वाली सूचना.

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  2. एचडीएफसी स्टैण्डर्ड लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी कई भर्त्सना करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं हैं.

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  3. स्वप्न मञ्जूषाजी ने यह टिप्‍पणी की थी -

    ''ये सच है कि एच डी एफ सी लाईफ ने, शुरू में इस क्लेम को रिजेक्ट कर दिया था, लेकिन फिर २ दिनों में उन्होंने इस क्लेम को ऑनर किया। एच डी एफ सी लाईफ ने, एल आई सी के एजेंटों द्वारा, इस तरह की अफ़वाह फैलाने की बात कह कर, एल आई सी पर दावा ठोक दिया है। देखिये आगे क्या होता है।''

    कृपया मेरी पोस्‍ट ध्‍यान से पढें। मैंने इसमें, निजी बीमा कम्‍पनी द्वारा दावा भुगतान न करने को विषय नहीं बनाया। इस सूचना पर लोगों की चुप्‍पी को विषय बनाया है।

    यदि स्वप्न मञ्जूषाजी की सूचना सही है तो मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि आधी-अधूरी जानकारी नहीं दी जानी चाहिए थी। 'अभिव्‍यक्ति के कौशल' के नाम पर ऐसे अर्ध्‍द सत्‍य का समर्थक मैं कदापि नहीं हूँ। मुझे पता होता तो मैं अपनी पोस्‍ट में यह तथ्‍य भी उल्‍लेखित करता।

    मेरी पोस्‍ट को एक बार फिर ध्‍यान से पढने का उपकार करें। यह सूचना एजेण्‍टों ने जारी नहीं की है। एजेण्‍टों को उपलब्‍ध कराई गई है। एजेण्‍टों द्वारा ऐसी सूचनाओं को, अतिरिक्‍त उत्‍साहपूर्वक उपयोग करना अस्‍वाभाविक नहीं।

    सूचनाओं और जानकारियों के मामले में मैं खुद को, सामान्‍य एजेण्‍टों की अपेक्षा तनिक अधिक सम़1ध्‍द और सजग मानता हूँ। किन्‍तु, जैसा कि मैंने अपनी इस पोस्‍ट के शुरु में ही कहा, यह विषय-वस्‍तु मुझे भी फेस बुक से मिली। ऐसे में, सामान्‍य एजेण्‍ट यदि इसका उपयोग अतिरिक्‍त उत्‍साह से करें तो उन्‍हें दोषी न मानें।

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  4. स्वप्न मञ्जूषाजी की उपरोक्‍त टिप्‍पणी, कुछ अन्‍य टिप्‍पणियों के साथ 'स्‍पेम' में चली गई थीं। उन्‍हें प्रकाशित करने की कोशिश में अचानक ही 'डिलिट' काबटन दब गया और मेरा कबाडा हो गया।

    कोई बताए कि ऐसी डिलिट टिप्‍पणियों को वापस कैसे हासिल किया जा सकता है।

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    1. कोई कबाड़ा नहीं हुआ है, हम फिर से टिपिया देते हैं इसमें कौन बड़ी बात है, बस ई बार डिलीटीयेगा नहीं। जहाँ तक हमको मालूम है, इस तरीके से जो टिप्पणी सिधार जाती है, ऊ फिन कभी वापिस नहीं आती है :)

      ये सच है कि एच डी एफ सी लाईफ ने शुरू में इस क्लेम को रिजेक्ट कर दिया था, लेकिन फिर २ दिनों में उन्होंने इस क्लेम को ऑनर किया। एच डी एफ सी लाईफ ने एल आई सी के एजेंटों द्वारा, इस तरह की अफ़वाह फैलाने की बात कह कर एल आई सी पर दावा ठोक दिया है। देखिये आगे क्या होता है।
      बाकी जो भी आप लिखे हैं, उसी को विस्तार देने की मंशा थी हमारी, अधूरी जानकारी अगर पूरी हो जाए तो सबका भला ही होगा। बिना मतलब एच डी एफ सी लाईफ कोसे जाने से बच जाएगा, और कौन जाने कभी हमरे भी काम आ जाएगा :)

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  5. हे भगवान, इन्हें सदबुद्धि देना..

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  6. shameful on the part of hdfc standard like.they must pay without any delay with public apology in written to the family

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  7. उफ़-
    पर मार्केट में इनकी घुसपैठ जबरदस्त तरीके से बढ़ रही है-
    राम बचाए-

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  8. बेहद अहम सूचना। प्राइवेट कंपनियों के फर्जीवाड़े धीरे-धीरे आम हो रहे हैं, और ऊपर से तुर्रा ये कि सरकार सब कुछ प्राइवेट के अधीन करती जा रही है।

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  9. बड़ा ही खेद पूर्ण यदि मुझे 1000 करोड़ भी मरने के बाद मिले मेरे किस काम का . सो सिनेमाई अंदाज़ से निकल कर सम्मान पूर्वक भुगतान करे अन्यथा चुल्लू भर पानी में डूब मरे

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  10. वैसे आईआरडीए आजकल ऐसे मामलों मे काफी सक्रिय है ... और ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि निजी कंपनियों पर किसी का ज़ोर नहीं है आज कल खबरों मे सहारा के बारे मे आप पढ़ ही रहे होंगे ! अच्छा है कि मामला निबट चुका है ! वैसे इस पोस्ट पर आपकी निजी सोच तथ्यों पर भारी पड़ी है ! एलआईसी को आप जैसे अभिकर्ताओं पर मान होना चाहिए ! मेरी किसी बात से कष्ट हुआ हो माफ कीजिएगा ! सादर !


    आज की ब्लॉग बुलेटिन यह कमीशन खोरी आखिर कब तक चलेगी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. कष्‍टवाली तो कोई बात ही नहीं। हम सबने एक दूसरे की सदाशयता पर भरोसा करना चाहिए। मुझसे आपकी कोई व्‍यक्तिगत शुत्रुता नहीं है। आपने जो भी कहा है, उससे आप मुझे सुधारेंगे, मैं अधिक वस्‍तुपरक हो सकूँगा।

      आपसे मेरा करबध्‍द अनुरोध है कि यदि आपके लिए सम्‍भव हो तो इस पोस्‍ट को एक बार फिर तनिक सावधानी से पढें। एलआईसी और निजी बीमा कम्‍पनी को लेकर मैंने अपनी ओर से कुछ भी नहीं कहा है। एलआईसी के पत्र का जो चित्र लगा है (जो मुझे फेस बुक से मिला) है, उसमें लिखी बातें ही कही हैं। कौन सी बीमा कम्‍पनी, दावा भुगतान में आगे है, यह भी उस पत्र से ही लिया गया है - मेरी अपनी कोई राय नहीं है।

      मैंने इस बात को रेखांकित करने की कोशिश की थी कि इस मुद्दे पर, करकरेजी के परिवार की चिन्‍ता में कोई नहीं बोला।

      स्‍वप्‍न मंजूषाजी वाली टिप्‍पणी को आधार बना कर मैं ने जो लिखा है, उसे भी ध्‍यान से पढने की कृपा करें। मैंने 'अर्ध्‍द सत्‍य' के उपयोग से असहमति जताई है - आपकी टिप्‍पणी से पहले ही।

      यह सब मैं न तो आपकी बात का प्रतिवाद करने के लिए लिख रहा हूँ और न ही अपना स्‍पष्‍टीकरण देने के लिए। मेरी रुचि इसमें है कि मैंने भरसक सावधानी बरती, अपनी ओर से कोई बात नहीं कही, फिर भी आपको मेरी निजी सोच तथ्‍यों पर भारी पडती अनुभव हुई। ऐसा क्‍यों कर हुआ, यही उत्‍सुकता है।

      मैं खुद में सुधार का उत्‍युक हूँ। यदि आप अपना मोबाइल नम्‍बर सूचित करें तो आपसे बात कर, अपनी इस कमी को जानने की कोशिश करूँ।

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    2. मुझे लगता है मेरे कमेन्ट से आपको कष्ट पहुंचा है ... माफ कीजिएगा मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था पर इस पोस्ट पर आपने जितनी हड़बड़ी मे जानकारी दी है केवल इस लिए मैंने ऐसा कहा !

      पर अब जब आप ने पूछा ही है तो मैं भी बात साफ कर देना चाहता हूँ आप ही ने लिखा है कि "किसी निजी बीमा कम्पनी पर भला किसी का क्या जोर!" ... एक बीमा अभिकर्ता के रूप मे आप अच्छी तरह से जानते होंगे कि चाहे एलआईसी हो या कोई और निजी कंपनी ... भारत मे अपना व्यापार करने के लिए सभी को आईआरडीए के नियमों का पूरी तरह से पालन करना होता है ... ऐसे मे क्या ऊपर दिया गया आप का कथन भारतीय जीवन बीमा निगम का पूर्णकालकि एजेण्ट के रूप मे आपकी निजी राय का तथ्यों पर भारी पड़ना नहीं है !

      आप के अनुसार आप ने इस पोस्ट मे करकरेजी के परिवार की ओर लोगो का ध्यान दिलाना चाहा है पर आप खुद देखिये पोस्ट के शुरू से ले कर अंत तक आपने एलआईसी का एक प्रचार सा ही किया है कि एलआईसी ने क्या किया और एचडीएफ़सी ने क्या नहीं किया ... ऐसे मे आप खुद बताएं कोई क्या राय दे उनके परिवार के बारे मे !? मैंने इस लिए लिखा भी था कि "एलआईसी को आप जैसे अभिकर्ताओं पर मान होना चाहिए !"

      मैं आप से उम्र और अनुभव मे काफी छोटा हूँ पर इस पोस्ट को पढ़ एक पाठक के रूप मे जो विचार मुझे आए है मैंने आप से केवल वही कहा है !

      सादर !

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    3. नहीं। मुझे तनिक भी कष्‍ट नहीं पहुँचा। मैं कह ही चुका हूँ कि मुझसे आपकी कोई निजी शत्रुता नहीं है, इसलिए कोई कारण नहीं बनता कि आप मुझे कष्‍ट पहुँचाऍं। मैं सबकी सदाशयता पर विश्‍वास करता हूँ।

      हॉं, इस बात पर तनिक आश्‍चर्य हुआ (और अभी भी हो रहा है) कि एलआईसी के लेटर हेड पर दी गई जानकारियों को आप मेरे द्वारा दी हुई जानकारियॉं मान रहे हैं। मैंने इतना ही किया है कि जो घटनाक्रम अंग्रेजी में था, उसे हिन्‍दी में प्रस्‍तुत किया।

      अब तक मैं मान रहा था कि अपनी ओर से मैंने एक ही बात कही - करकरेजी के परिवार के प्रति किसी के द्वारा चिन्‍ता न किए जाने की। किन्‍तु आपकी यह टिप्‍पणी पढ कर अनुभव हुआ कि "किसी निजी बीमा कम्पनी पर भला किसी का क्या जोर!" वाली बात मैंने कही है। हॉं, मैं स्‍वीकार करता हूँ कि मैंने यह बात कही और यह भी स्‍वीकार करता हूँ कि यह बात इस शब्‍दावली में मैंने नहीं कहनी चाहिए थी। मेरी इस चूक की ओर ध्‍यानाकर्षित करने के लिए अन्‍तर्मन से धन्‍यवाद। इसी तरह मुझ पर नजर बनाए रखिएगा। इस चूक के लिए मैं आप सहित समस्‍त सम्‍बन्धितों से क्षमा याचना करता हूँ। यथा सम्‍भव सतर्कता बरतूँगा कि ऐसी चूक किसी भी मामले में मुझसे आगे से न हो। सुधार की सम्‍भावनाऍं आदमी में अन्तिम क्षण तक बनी रहती हैं।

      सदाशयता से कही बातों के बीच में आयु का अन्‍तर अथवा वरिष्‍ठता/कनिष्‍ठता न तो कोई अर्थ रखती है और न ही कोई महत्‍व। विश्‍वास कीजिएगा कि मुझे आपकी किसी बात से मुझे कोई कष्‍ट नहीं हुआ और न ही बुरा लगा।

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