ऐसे कोटि-कोटि सागर

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की पचीसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




ऐसे कोटि-कोटि सागर

युग-युग तक बलिदान हमारे, इसी तरह मुसकायेंगे
ऐसे कोटि-कोटि सागर अब, पग-पग पर लहरा
येंगे
दो हाथों की ताकत हमने, कुछ विलम्ब से पहिचानी
नहीं चलेगी अब धरती पर, आसमान की मनमानी
उमड़ें-घुमड़ें नहीं भले ही, श्याम घटायें मस्तानी
किन्तु धरा अब रोज पियेगी, जी भर-भर अमृत पानी
खून पसीना जो माँगेंगी, छक कर इसे पिलायेंगे
ऐसे कोटि-कोटि सागर अब, पग-पग पर लहरायेंगे

नये पसीने से धोया हमने, हर एक दाने को
रक्त-बिन्दु बोये हैं हमने, फसलें नई उगाने को
श्रम से नाता जोड़ लिया है, कल खुशहाली लाने को
नई कोंपलें आतुर हैं अब, फसलें नई उगाने को
नीलम मोती की फसलों के, अब हम ढेर लगायेंगे
ऐसे कोटि-कोटि सागर अब पग-पग पर लहरायेंगे

तीरथ नया बना डाला है, हमने हँसते, मुसकाते
समय-समय पर दिया करेगें, ऐसी ही हम सौगातें
अब सोने के दिन होंगे और, चाँदी की होंगी रातें
रोज सजेगी अब दुलहनियाँ, रोज सजेगी बारातें
इन लहरों के स्वर में हम सब, रोज बधाई गा
येंगे
ऐसे कोटि-कोटि सागर अब, पग-पग पर लहरा
येंगे


 
जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।





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