झील

 

झील

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की तैंतीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।





झील

शान्त
गूँगी झील के थी मत अड़ावो हाथ यूँ
हाँँ, अणी का नीर ने छेड़ो मती
काँकरी मारो मती
पान-पत्याँँ, पानड्याँ न्हाको मती
फूल परभावो मती
और मत छोड़ो अणी में नाव वा नानीऽक सी
जा के कागद की है
कोई न्‍हीं काठ की
काँ के एक पल का खेल में मन आपको मस्‍ताय है
पण लहर बणवा में पसीनो नीर के भी आय है


(मूलकवि - अलबर्तों द लकर्दा पुर्तगाल का युवक कवि जन्म सन्‌ 1928)

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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