गुरु मन्त्र

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की अठारहवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




गुरु मन्त्र

सम्भावनाएँ
नहीं होतीं किसी की 
बाँदियाँ, चेरिया, दासियाँ
या लौंडियाँ।
अवसर नहीं होते
किसी के गुलाम।
ये होते हैं राजा-रानी
बेगम और बादशाह
अपने अपने मन के।
पड़े नहीं, पौढ़े रहते हैं
भविष्य के राजमहलों में।
इनके अन्तःपुरों
इनके रनिवासों पर
जड़े होते हैं वज्र किवाड़
बन्द होती हैं अर्गलाएँ
भीतर से।
मैं सुझाता हूँ
इन्हें प्राप्त करने का
आसान तरीका
जो मैंने भी अपने
अतीत से सीखा
कि,
पहुँचते ही इनकी चौखट
पहिले आवाज दो
शायद ये सुन लें।
ना सुनें तो
खटखटाओ वो ड्योढ़ी, वो दरवाजा
शायद वे खोल दें।
पर तब भी नहीं खुलें इनके वज्र किवाड़
तो अपने संकल्प को दोहराओ
उसे हताशा में कुँआरा मत छोड़ दो
पूरी आत्म निष्ठा से
दो लातें जड़ो उन वज्र किवाड़ों पर
और कचकचा कर
दरवाजा तोड़ दो।
फिर देखो
करिश्मा अपने पराक्रम का।
पुरुषार्थ का मतलब है
पुरुषार्थ
ऐसा मत समझना कि
तुम्हारी किस्मत चमकी
तुम्हारा भाग्य चमका।
यूँ तो
आ जामुन मेरे मुँह में गिर
जैसे आलसियों की
जिन्दगी भी चला करती है
पर
चाकर होते हैं अवसर
पराक्रमों के
और सम्भावनाएँ
पुरुषार्थ पर मरती हैं।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।










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