मोड़ीराम

 
श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की पाँचवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।



मोड़ीराम

मेहनत कर म्हारा मोड़ीराम
आखो देस अगाड़ी जइर्यो, 
पाछे रईग्यो थारो गाम
मेहनत कर म्हारा मोडीराम

चाँद गरे ने सूरज बरे
कुदरत अपणो काम करे।
तू माचा पर पड़्यो-पड़्योे
ऊमर ने बदनाम करे।
जामण हामूँ नारे रे
यूँ कई छाती बारे रे
फेंक पछेड़ी, छोड़ी दे मेड़ी
पीढ़ी की पीढ़ी व्हे बदनाम
मेहनत कर म्हारा मोड़ीराम

काम करे ने काज करे
बस खुद ने नाराज करे
के गाराँ के छक्याँ दे
जद वागड़ थारो खेत चरे
धन के लारे ढोल्यो जा
जस थारो अणतोल्यो जा
थोड़ो घणो चन्त दे
तार नही तो तन्‍त दे
न्हीतर जिन्दगी है नक्काम
मेहनत कर म्हारा मोड़ी राम

तरसी नद्याँ नारा रे
तरसा काँकड़ थारा रे
नत इन्दर ने गाराँ दे
पाणी की पणिहाराँ रे
इन्द्राणी पोमावे रे
हावण हूको जावे रे
कामणगारी थारी कुदारी
इन्दर ने भी राखी ले गुलाम
मेहनत कर म्हारा मोड़ीराम

केताँ म्हारो कण्ठ भरा
भूखा थारा खेत-खरा
पेलाँ श्रम को पृण्य कमा
पाछे कराँगा पाप नरा
जग में कोगद वेईरी रे
छोर्याँ ताना देईरी रे
जामणी ने जस दे
कामणी ने रस दे
मती डुबाँ मरदाँ को नाम
मेहनत कर म्हारा मोड़ीराम

वणकी भरी वखारी रे
अणकी रीती थारी रे
एक भूखो, एक अफरई र्यो
या कण की जिम्मेदारी रे
टँग लावे, टँग खावे रे.
पाणी उतर्यो जावे रे
व्याज वद्याँ जा, और लद्याँ जा
नाम पड़ीग्यो थारो रोटीराम
मेहनत कर म्हारा मोडीराम

चोर ठगारा आवे रे
उल्टो काँच वतावे रे
नाम धरम को लेई-लेई ने
थने उण्डो और डुबावे रे
मेहनत सबती बड़ो धरम
कुव्वत सबती बड़ो करम
नवो पसीनो थारो मदीनो
यो ईऽज थारो रहीम और राम
मेहनत कर म्हारा मोड़ीराम

उठ धरती ने स्वर्ग वणा
ऊमर थोड़ी ने काम घणा
निकर, हरग की होगन खा
म्हूँ वाँटूगा गोर-धणा
मोहरत निकरयो जावे रे
बैरागी बरदावे रे
खुशी की लाड़ी परण अनाड़ी
बनड़ी ऊबी हामोहाम
मेहनत कर म्हारा मोड़ीराम
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन





यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।  ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।  रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।












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