इस वक्त

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की उन्नीसवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




इस वक्त

भूकम्प के भय से भयभीत होकर
हम
घर बनाना नहीं छोडते।
बाढ़ों से टूटने पर भी
तटवासी अपना तटवास
नहीं तोड़ते।
मृत्यु के डर से
मृत्युंजय मानव
मुँह पर कफन नहीं ओढ़ते।
भूकम्प बाढ़ और मृत्यु को
नये अर्थ देता है संघर्ष
नया बोध देती है जिजीविषा
यही समय है जब हम
जगायें अपनी जिजीविषा को
ललकारें अपने संघर्ष को
और
मरने नहीं दें
अपनी मनीषा को।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल









यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।












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