गायेंगे, झुमायेंगे

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की चौथी कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।





गायेंगे, झुमायेंगे

गायेंगे, झुमायेंगे, जिन्दगी लुटायेगें
इस तरह सदा-सदा वतन के काम आयेंगे

ऐ निराश आ भी जा
ऐ उदास आ  भी जा
मिल रही है जिन्दगी
खिल रही है जिन्दगी

आँधियाँ उठें, उठें, बिजलियाँ गिरें, गिरें
मुश्किलों की बदलियाँ आज क्या अभी घिरें
हम तो बस इसी तरह से शान्ति गीत गायेंगे
इस तरह सदा-सदा वतन के काम आयेगें
ऐ निराश आ भी जा.....

मुस्कराना, खिलखिलाना जिन्दगी का नाम है
आँसुओं को पोंछ देना जिन्दगी का काम है
आँख-आँख की नमी को पांछेंगे सुखायेंगे
इस तरह सदा सदा वतन के काम आ
येंगे
ऐ निराश आ भी जा.....

इस चमन में अब हमेशा नौबहार छा
येंगीं
बुलबुलें और कोयलें वसन्
 सदा गायेंगीं
वक्त आने पर चमन को खून भी पिलायेंगे
इस तरह सदा-सदा वतन के काम आयेंगे
ऐ निराश आ भी जा.....

सर पे हाथ देने वाले हम से रिश्ता जोड़ ले
साथ में हमारे तू भी जिन्दगी को मोड़ ले
मुस्कुराना बढ़ते जाना सबको हम सिखायेंगे
इस तरह सदा सदा वतन के काम आयेंगे
ऐ निराश आ भी जा.....
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।




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