मेरा कद

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की छठवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




मेरा कद

मेरे जंगलों का वो दरख्त
जिस पर चढ़ता-उतरता था मैं
वक्त-बे-वक्त,
हर बार देता था मुझे
अपना कद आसमानी,
उसकी फुनगियों तक से करता था
मैं अपनी मनमानी।
बैठाकर अपनी कमानीदार
टहनियों पर मुझे
होता था खुश
मेरी किलकारियों पर।
बढ़ाने को अपना कद
छूने को आसमान
मैं भी जा बैठता था
वक्त-बे-वक्त
उसकी आकाशी अटारियों पर।
उसने कभी रहने नहीं दिया मुझे
बबुआ या बौना
पर एक दिन हो गया कुछ वैसा
कि जैसा नहीं था होना ।
मेरे यारों ने
काट कर वह पेड़
बना दी मेरे लिए एक कूर्सी।
बैठा कर उस कुर्सी पर मुझे
बना दिया रुतबेदार
और डाल दिए मेरे गले में
रंग-बिरंगे फूलों
और खुशबूदार नोटों के हार।
पर हाय री, किस्मत,
बैठते ही कुर्सी पर
सवा पाँच फुट का मैं
रह गया केवल ढाई फुटा,
बैठा हूँ कुर्सी पर
पर बिलकुल लुटा-लुटा।
अब गला मेरा है
पर हाथ उनके हैं,
नाक मेरी है
पर दाँत उनके है।
और लो,
तना भी वही, टहनी भी वही
मैं भी वही
पर यह भी खूब रही
कि कूर्सी पर मैं खड़ा नहीं हो सकता,
बैठकर कुर्सी पर
अपने कद से बड़ा नहीं हो सकता।
घट गया मेरा कद
रोज उड़ती है मेरी भद
कददाता मेरा कद्दावर पेड़
गया जान से
और उस पेड़ पर बसेरा लेने वाले
पंछी तक कह रहे हैं कि
मैं गया ईमान से।
तना भी वही
टहनी भी वही
और मैं भी वही
पर यह भी खूब रही।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल



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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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