तुम पुनर्जन्म लेकर फिर आओगे



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ 
की निन्यानब्बेवी कविता


यह कविता संग्रह
पाठकों को समर्पित किया गया है।


तुम पुनर्जन्म लेकर फिर आओगे
(डॉ. शिवमंगल सिंह जी ‘सुमन’ के प्रति)

तुम युग का तरल गरल पीते थे
पर कालिदास की शेष कथा कहते थे
महामृत्यु से डरे नहीं तुम कल तक
तुम महाकाल की नगरी में रहते थे।

पर यह क्या?
तुमने क्षिप्रा का पानी पीकर
जीवन को अस्सी प्रतिशत जीकर
चक्रतीर्थ की महाभस्म बनने की धुन में
चन्दन से खुद को लिपटा डाला
‘साँसों का हिसाब’
सारा ही निपटा डाला!

‘प्रलय सृजन’ का गान अभी बाकी था
बन्दनवारों का एकलव्य एकाकी था
आज नहीं कल, कल का अब क्या होगा?
पता नहीं हलचल का अब क्या होगा?
मालिनें पचासों खड़ी फूल लेकर
तुम निकल गये भैरव का त्रिशूल लेकर
सम्पूर्ण मालवा डूबा है सन्नाटे में
ज्वार बदल क्यों गया आज भाटे में?
शेष शंख, घोंघे हैं अब इस तट पर
यह अमरबेल क्यों छाई अक्षयवट पर?

पारस भी लोहे को करता सोना है
पर, मुझ जैसों का अब क्या होना है?
मुझ जैसा मिट्टी का पुतला बस देखा
और बदल दी आयु-धर्म की रेखा
पारस के लिये धातु आवश्यक
पर देख रहा परिवेश समूचा औचक
पारस के यश का भंजन कर डाला
तुमने मिट्टी को कंचन कर डाला।

मैं ही क्या
मुझ जैसे कई कलमगर
चढ़ बैठे यश की महालहर पर
यह आशीर्वाद तुम्हारा
यह पुण्य प्रसाद तुम्हारा
हम सिर्फ गाते हैं
गाते भी क्या, दुहराते हैं
जूठन को शुद्ध बनाते हैं।

हमने तुम में ही देखा सूर्य ‘निराला’
और ‘महादेवी’ का दिव्य उजाला
प्रगतिकाल की छटा तुम्हीं में देखी
’युग की गायत्री’ तुमसे ही सीखी।
अब उत्ताप ताप शोणित का कैसे जागे?
पथ स्वयं मुड़े कैसे राही के आगे?
कैसे उत्ताल तरंगों से नाविक टकराये?
यह काव्य-तरी कैसे तट पाये?

ये रोम, केश सब प्रश्न चिन्ह लगते हैं
हर एक साँस को अलंकार ठगते हैं
कविता का पिंगल आज विपन्न खड़ा है
भूलुंठित काव्य किरीट पड़ा है।

हम तुमको जीवित रखें
रखें तो कैसे?
अब नहीं दीखते कोसों तक
तुम जैसे!

कालीदास, भरथरी सभी थे तुम में
गोरखनाथ, कबीर, रवीन्द्र, निराला
बीते कल क्या, आज, अभी थे तुम में
तुम सब कुछ थे, अवन्तिका, उज्जयिनी
रूप, रंग , रस से भरपूर सुमन थे
सचमुच थे एक सुप्त दावानल
उल्लसित किन्तु उन्मन थे।

तुम पुनर्जन्म लेकर फिर आओगे
कालीदास की शेष कथा गाओगे
यही सदा तुमने हमको समझाया
पाठ यही गरिमा के साथ पढ़ाया।
तब तक हम कैसे करें तपस्या?
है आज हमारी सब से बड़ी समस्या।

यह सुमन-गन्ध कंगाल कलम में
कैसे कहाँ छिपाऊँ?
झरे सुमन का यह पराग-धन
किस पर आज लुटाऊँ?
आँखें अपना गीला आँचल
बोलो कहाँ सुखायें?
‘उदयन पथ’ पर बना ‘समर्पण’
शायद राह सुझाये।

समझ नहीं पड़ता है गुरुवर
कैसे कर्ज उतारूँ?
इस शेष आयु को
कैसे, कहाँ गुजारूँ?
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जैसा कि दादा श्री बालकवि बैरागी ने ‘आत्म-कथ्य’ में कहा है, इस संग्रह ‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की कई रचनाएँ अन्य संग्रहों में पूर्व प्रकाशित हैं। इसलिए यहाँ, उन सब कविताओं को एक बार फिर से देने के बजाय उनकी लिंक यहाँ दी जा रही हैं। सम्बन्धित कविता की लिंक क्लिक करने पर कविता पढ़ी जा सकती है।

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अट्ठाईसवी कविता ‘हम हैं सिपहिया भारत के’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उनतीसवी कविता ‘आह्वान’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तीसवी कविता ‘दो-दो बातें’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इकतीसवी कविता ‘गोरा-बादल’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की बत्तीसवी कविता ‘मेरे देश के लाल हठीले’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तैंतीसवी कविता ‘हम बच्चों का है कश्मीर’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चौंतीसवी कविता ‘नई चुनौती जिन्दाबाद’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की पैंतीसवी कविता ‘नये पसीने की नदियों को’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की छत्तीसवी कविता ‘अन्तर का विश्वास’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की सैंतीसवी कविता ‘मधुवन के माली से’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अड़तीसवी कविता ‘देख ज़माने आँख खोल कर’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उनचालीसवी कविता ‘छोटी सी चिनगारी ही तो’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चालीसवी कविता ‘ऐसा मेरा मन कहता है’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इकतालीसवी कविता ‘काफिला बना रहे’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की बयालीसवी कविता ‘माँ ने तुम्हें बुलाया है’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तरालीसवी कविता ‘रूपम् से’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चव्वालीसवी कविता ‘उमड़ घुमड़ कर आओ रे’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की पैंतालीसवी कविता ‘मेघ मल्हारें बन्द करो’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की छियालीसवी कविता ‘एक गीत ज्वाला का’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की सैंतालीसवी कविता ‘जो ये आग पियेगा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अड़तालीसवी कविता ‘फिर चुपचाप अँधेरा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उनपचासवी कविता ‘तरुणाई के तीरथ’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की पचासवी कविता ‘अधूरी पूजा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इक्यावनवी कविता ‘अंगारों से’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की बावनवी कविता ‘एक बार फिर करो प्रतिज्ञा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तरेपनवी कविता ‘अग्नि-वंश का गीत’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चौपनवी कविता ‘चिन्तन की लाचारी’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की पचपनवी कविता ‘कोई इन अंगारों से प्यार तो करे’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की छप्पनवी कविता ‘इस वक्त’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की सत्तावनवी कविता ‘उनका पोस्टर’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अट्ठावनवी कविता ‘घर से बाहर आओ’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उनसाठवी कविता ‘मरण बेला आ गई त्यौहार है’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की साठवी कविता ‘चलो चलें सीमा पर मरने’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इसठवी कविता ‘आई नई हिलोर’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की बासठवी कविता ‘हौसला हमारा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तिरसठवी कविता ‘युवा गीत’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चौंसठवी कविता ‘हिन्दी अपने घर की रानी’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की छियासठवी कविता ‘ज्ञापन: अतिरिक्त योद्धा को’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की सड़सठवी कविता ‘बन्द करो’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अड़सठवी कविता ‘क्रान्ति का मृत्यु-गीत’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उनसत्तरवी कविता ‘ठहरो’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की सत्तरवी कविता ‘आस्था का आह्वान’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इकहत्तरवी कविता ‘समाजवाद’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की बहत्तरवी कविता ‘रात से प्रभात तक’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तिहत्तरवी कविता ‘सीधी सी बात’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चौहत्तरवी कविता ‘आत्म-निर्धारण’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की पचहत्तरवी कविता ‘आलोक का अट्टहास’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की छियोत्तरवी कविता ‘माँ ने कहा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अठहत्तरवी कविता ‘महाभोज की भूमिका’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उन्यासीवी कविता ‘चिन्तक’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की अस्सीवी कविता ‘गन्ने! मेरे भाई!’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इक्यासीवी कविता ‘जीवन की उत्तर-पुस्तिका’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की बयासीवी कविता ‘पर्यावरण प्रार्थना’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की तिरयासीवी कविता ‘एक दिन’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की चौरियासीवी कविता ‘एक और जन्मगाँठ’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की पिच्यासीवी कविता ‘जन्मदिन पर-माँ की याद’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की छियासीवी कविता ‘पेड़ की प्रार्थना’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की सित्यासीवी कविता ‘रामबाण की पीड़ा’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इट्ठ्यासीवी कविता ‘पर जो होता है सिद्ध-संकल्प’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की उन्नब्बेवी कविता ‘उठो मेरे चैतन्य’ यहाँ पढ़िए

‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’ की इठ्यानबेवी कविता ‘वंशज का वक्तव्य: दिनकर के प्रति’ यहाँ पढ़िए





संग्रह के ब्यौरे -

मैं उपस्थित हूँ यहाँ: छन्द-स्वच्छन्द-मुक्तछन्द-लय-अलय-गीत-अगीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
एक्स-30, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-110020
वर्ष - 2005
मूल्य - रुपये 95/-
सर्वाधिकार - लेखकाधीन
टाइप सेटिंग - आर. एस. प्रिण्ट्स, नई दिल्ली
मुद्रक - आदर्श प्रिण्टर्स, शाहदरा



रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक अभियोजन  (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।
 



























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