आलोक का अट्टहास




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की तीसरी कविता 






आलोक का अट्टहास

द्वार-देहरी-दर-दीवार
दीवट या दौलतखाने में
रख दो हजार दीये
जला लो लाख दीपक
अपनी मुँडेर पर
कोई फर्क नहीं पड़ता
अगर अँधेरा है
दिलों के आले में
जो अन्धा है
मन का मालिक
तो अँधेरी गुफा है
तुम्हारी उम्र की पगडण्डी।

अर्थ समझो पहले उजास का
सत्यानास मत करो
टनों तेल और
मनों कपास का।
रस्म से ज्यादा
आगजनी है यह जगर-मगर।
अमावस से लड़नेवाला
धरापुत्र-माटी का बेटा
यह दीया
तुमसे कैसे लड़े?
तुम्हारे अन्तस की
काल कोठरी में छूटकर
सर्य मन्त्र कैसे पढ़े?

अन्तहीन क्षितिजों की छाती पर
हस्ताक्षर करनेवाला
यह ज्योति ज्वार
तुम्हारे क्षुद्र संसार में
समाएगा भी कैसे?
आलोक का
यह सशरीर अट्टहास
तुम्हारे दम्भ-दंशित हृदय-प्रदेश में
अपनी बस्ती
बसाएगा भी कैसे?
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली

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