कब से तुमको नहीं निहारा

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की तेईसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



कब से तुमको नहीं निहारा      

कब से तुमको नहीं निहारा
साँसों ने सौगन्धें दे-दे
कितनी बार पुकारा
कब से तुमको नहीं निहारा

वन, उपवन, खग, मृग से पूछा
पथ भटके इस जग से पूछा
स्वयं तुम्हारे पद-चिह्नों की
चिर-परिचित सौरभ से पूछा

अम्बर भी अनुमान न पाया
लीलाधाम तुम्हारा
कब से तुमको नहीं निहारा


पूछा अपने उन्मन मन से
पूछा सपनों के बचपन से 
पलकों की पायल से पूछा
पूछा हर घायल बन्धन से
  
हर तोरन से लुटकर लौटा
प्रेरा प्रश्न कुँआरा
कब से तुमको नहीं निहारा


धरती की काया फगुनाई
रस-ऋतु की राधा पगलाई
मेरा ही अन्तःनुर सूना
कलप रहे कुन्तल कजराई

प्राणों के पाहुन आओ भी
कब से खुला किवारा
कब से तुमको नहीं निहारा
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।























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