अन्ध कूप

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की बारहवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



अन्ध-कूप
(दादा के बड़े बेटे मुन्ना ने इस कविता पर रंगीन डाक्यूमेण्ट्री बनाई थी।)

वह कौन चली आती पनघट से
सावन की अन-अरसी बदली जैसी भरी-भरी 
यौवन के आभार हजारों हैं जिस पर
पर लगती है कुछ सहमी-सहमी डरी-डरी
कुछ बोल रही है मन ही मन
कुछ ओठ काटती दाँतों से
और भींज गया पल्लू देखो
कुछ स्वेद कणों की पाँतों से
क्या रूप सुहाना है इसका
क्या सुघर सलोनी लगती है
बेजोड़ कला उस ब्रह्मा की
शायद रति की पुनरुक्ती है
क्या कहा? क्या कहा?
चमारों के मुखिया उस रमुआ की घर वाली है?
यह पनघट से आई फिर भी
इसकी गागर क्यों खाली है?
अरे-अरे यह रोती है
क्या वजह बात आखिर क्या है?
इन हँसते-मुसकाते नयनों में
बेमौसम क्यों बरखा है?
क्या कहा? इसे ललकार दिया
फटकार दिया, दुत्कार दिया
तू नीच वंश में जायी है
यह कह कर परे उतार दिया?
क्या कहा, सवर्णों ने इसको
दे धक्के दूर हटाया है
पानी के बदले अपमानों का
कड़वा जहर पिलाया है?
नहीं! नहीं! यह झूठ बात है
ठहरो इससे ही पूछो
रो मत भाभी! सच बतला दे
क्या बीती है?

लाला! वह जो बड़ा कुआ है
अमृत जैसे पानी वाला
जिस पर आज सकल बस्ती के बड़े लोग पानी भरते हैं
उसका-मेरा रिश्ता है कुछ।
यह मत पूछो क्या रिश्ता है।
उस रोज कहाँ थे ये सारे
जब इसका नाम-निशान नहीं था
इस पनघट का पता नहीं था।
पनिहारी का गान नहीं था।
मैंने उठा कुदाल नीर की आशा में
जब पहली चोट लगाई थी
और उस माटी से मुट्ठी भर जब
मैंने शीश चढ़ाई थी।
कैसी-कैसी कसमें खाई
इस यौवन में, तुम क्या जानो 
कि
इसका पानी पिये बिना मैं नहीं तकूँगी मुख मुखिया का
तुम क्या जानो।
इन कसमस करते दो बाजू से मैंने यह निर्माण किया है
सौ-पचास मधु यामिनियों का न्यौछावर बलिदान किया है।
जब आई गीली मिट्टी तो मेरी आँखें झरती थीं
क्या जानूँ, मेरी आँखें या प्रकृति कुए को भरती थी
पर, इस अमृत की अंजुलि पी मैं जब, शयन कक्ष के द्वार गई
तो, महिनों के रूठे मुखिया को मना-मना कर 
हार गई।
मुखिया माना भी तो कब?
जब उसको विश्वास हो गया
कि मेरे श्रम से एक निपूता पिता बन गया
बाप हो गया।
यह मेरे श्रम की साकार प्रतिष्ठा है
यह नहीं किसी को प्यास लिये लौटाएगा
यह मेरे मुखिया का ‘बेटा’ है
यह उसका वंश चलाएगा।
इसका मेरा यह रिश्ता है
बेशक इसने मेरी छाती छुई नहीं
और दूध भी पिया नहीं
लेकिन क्या मूल्य पसीने का
किसी दूध से कम है?
मुझे पसीना मेरा ही छूने पर बन्धन है
यही दुख है मेरे मन को, इसी बात का गम है।

ये आँसू इसलिए नहीं कि मुझे वहाँ अपमान मिला है
ये आँसू इसलिए नहीं कि मुझे वहाँ शैतान मिला है
ये आँसू इसलिए नहीं कि मुझको मारा-दुत्कारा है
थे आँसू इसलिए नहीं कि मुझे वहाँ फटकारा है
वे आँसू इसलिए नहीं कि इस बस्ती का मन बिगड़ रहा है
ये आँसू इसलिए कि माँ-बेटा बरबस बिछड़ रहा है।

लाला! मैं, मेरा मुखिया, मेरे परिजन
बरसों प्यासे जी सकते हैं
इससे अधिक और भी कड़वा जहर, हलाहल
पी सकते हैं
पर मेरे आँगन तुलसी का एक बिरवा है
और एक अभागन कजरी गैया है
इन दोनों की प्यास नहीं देखी जाती है
वह देखो तुलसी का बिरवा मुरझाता है
वह देखो कजरी रह-रह कर चिल्लाती है।
वे राह देखते होंगे मेरी
और यहाँ ठीकरे रीते हैं
भैया वो मुझसे पानी माँगेंगे
वो नहीं पसीना पीते हैं।
पर हाय! तुम्हारा यह समाज
इस दुखड़े को क्या समझेगा?
और उसे मतलब भी क्या है?
पर ठहर मेरी प्यासी कजरी!
ओ तुलसी बहना! धीरज धर
मैं आऊँगी गागर भर कर
लाला! तुम मुखिया से कहना
मैंने फिर शपथ उठाई है
ढाढस देना मेरी कजरी को, मेरी तुलसी को
कहना मैंने फिर कुदाल मँगवाई है।
फिर मेरे बाजू फड़के हैं
फिर मुझे पसीना छूटा है
मुखिया के घर फिर थाली बजने वाली है
मुझको फिर से माँ बनना है
जिसके अमृत में अवगाहन कर सके हमारा यह समाज
ऐसा ही बेटा जनना है
छोड़ो रस्ता, जाने भी दो
अब पीड़ा नहीं सही जाती है।
और......
और प्रसव की पीड़ा ले
सावन की अनबरसी बदली जैसी भरी-भरी

कहकर चली गई वह श्रम की देवी मुझको सब कुछ खरी-खरी
देनी है उसको वह कुदाल 
मुखिया से भी कुछ कहना है
उसकी कजरी को, उसकी तुलसी को
कुछ ठण्डा ढाढस देना है !

भगवान! मुझे कुछ शक्ति दो
क्यों पाँव नहीं उठते मेरे
यह काम मुझे करना होगा
वह पूत जने उससे पहले
‘अन्धकूप’ यह छूतछात के बीहड़ का
उसी कुदाली की नोकों से
श्रमदेवी की जय गुँजा कर
आज मुझे भरना होगा।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















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