ये फागुन और याद तुम्हारी

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की चौबीसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



ये फागुन और याद तुम्हारी

अँखियाँ हुईं घटा की सखियाँ
पीड़ा की पनिहारी
ये फागुन और याद तुम्हारी

000

शरद धुला अम्बर का आँगन
धरती के कण-कण पर फागन
हर मधुकर के अधर उजागर
हर कलिका की साध सुहागन

मेरी साधें अपराधिन-सी
देखें अलख अटारी
ये फागुन और याद तुम्हारी

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मादकता किसने बिखराई
बहक गई सारी अमराई
चीर दिया दिल हर टेसू का
नहीं समाती है अरुणाई

वेणु सुनाई पड़ती है पर
पूजे किसे पुजारी
ये फागुन और याद तुम्हारी

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सारी दुनिया देती ताने
तुम भी आज बने अनजाने
किसके आगे दुखड़ा रोऊँ
मेरी बस मेरा मन जाने

खूब दिया रे देने वाले
तेरी भी बलिहारी
ये फागुन और याद तुम्हारी
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।

 




















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