बाल-गीत : ओ मिट्टी के कण




श्री बालकवि बैरागी के बाल-गीत संग्रह
‘गाओ बच्चों’ का नौवाँ बाल गीत 




ओ मिट्टी के कण!

हम पर है उपकार कितना तेरा
हाँ तेरा
ओ मिट्टी के कण!
कैसे इतना कर्ज उतारे, छोटा सा जीवन
हमारा छोटा सा जीवन
ओ मिट्टी के कण!

जननी के आँचल में तू ही दूध बना प्यारे
तूने ही ममता के सारे खोल दिये द्वारे
(पर) दो किलकारी में ही सारा बीत गया बचपन
ओ मिट्टी के कण!

तू ही खून पसीना बन कर यौवन कहलाया
तू ने दी भरपूर उमंगे दी कंचन काया
(पर) दो सपने देखे ना देखे बीत गया यौवन
ओ मिट्टी के कण!

मिला बुढ़ापा, झुकी नजरिया झुकी कमरिया रे
मानो झक कर ढूँढ रही है गई उमरिया रे
ढूँढ-ढूँढ कर काया हो गई मरघट का ईंघन
ओ मिट्टी के कण!

आज नहीं तो कल या परसों कर्ज चुकाएँगे
तेरा यह एहसान चुकाने फिर से आएँगे
लाख जनम माँगेंगे तुझसे ऐसा ही जीवन
ओ मिट्टी के कण!
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संग्रह के ब्यौरे 

गाओ बच्चों: बाल-गीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर 
पटना, भोपाल, लखनऊ-226018
चित्रकार: कांजीलाल एवं गोपेश्वर, वाराणसी
कवर: चड्ढा चित्रकार, दिल्ली
संस्करण: प्रथम  26 जनवरी 1984
मूल्य: पाँच रुपये पच्चास पैसे
मुद्रक: देश सेवा प्रेस
10, सम्मेलन मार्ग, इलाहाबाद



बाल-गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया।

























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