गीत लहर


बच्चों के लिए लिखी गई
श्री बालकवि बैरागी की
इक्कीस छोटी-छोटी कविताओं की किताब
‘गीत लहर’







अमर तिरंगा
सबसे ऊपर केसरिया है,
सबसे नीचे हरा-हरा।
ठीक बीच में सफेद है,
जिस पर अशोक चक्र धरा।।
अमर तिरंगा यही हमारा,
हमें प्राण से प्यारा है।
इसकी शान न जाने पाये,
यह कर्तव्य हमारा है।।


सागर बोला

नदियाँ होतीं मीठी-मीठी,
सागर होता खारा-खारा।
मैंने पूछ लिया सागर से,
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ,
पहले खुद सागर बन जाओ।।



                            सड़कों पर

सड़कों पर हल्ला ही हल्ला,
लल्ली और लल्ला ही लल्ला।
कुछ भी नहीं सुनाई पड़ता,
हल्ले से हर बच्चा लड़ता।
हाल बुर हैं इन्सानों के,
एक नहीं, दोनों कानों के।।




                             बिजली

बिजली घर, बिजली का पीहर,
अपना घर, उसका ससुराल।
लेकिन यह सरकारी बेटी,
रखती दोनों को बेहाल।।
अपना बिल पूरा लेती है,
(पर) बिना कहे ही चल देती है।
पता नहीं किसके घर जाती,
एक जगह क्यों टिक नहीं जाती?


काले काले जामुन

काले काले जामुन पक कर,
टपक पड़े हैं खुली सडक पर।
बीन-बीन कर लोग खा रहे,
हँसी आ रही तड़क-भड़क पर।।
फल से पहले डाँट खायेंगे,
इन्हें बीनने वाले बच्चे।


(पर) पका हुआ फल पड़ा मिले तो,
खा लेते हैं अच्छे-अच्छे।।


फूलों की रक्षा

हम गमलों में फूल उगाकर,
बालकनी में लटकायेंगे।
फूल तोड़ना सख्त मना है,
तख्ती वहाँ लगायेंगे।
फूल हमें खुशबू देते हैं, 
बदले में रक्षा लेते हैं।



राखी

जाते-जाते सावन बोला,
देता हूँ सौगात तुम्हें।
भाई-बहन प्यार से सुन लो,
कहता हूँ इक बात तुम्हें।।

बाँध कलाई पर भैया के,
दो धागों का पक्का बन्धन,
मुँह मीठा करके फिर कहना,
मंगलमय हो रक्षा-बन्धन।।



             रेल

एक जमाना था रेलों का,
छुक-छुक, छुक-छुक चलती थी।
हर टेशन पर पानी पीती,
तब दस कदम टहलती थी।।
अब तो बिजली का इंजन है,
बात हवा से करता है।
बाकी सब तो ठीक-ठाक है,
दुर्घटना से डरता है।।

होली

नीला - काला - हरा - बैंगनी,
रंग नहीं है होली का।
झगड़े करना, गाली देना,
ढंग नहीं है होली का।।


बासन्ती हो, केसरिया हो,
रंगों का त्यौहार,
गाल-गाल पर हो गुलाल की,
मीठी-मीठी मार।।


पेड़ पिता

झर-झर झर-झर पत्ते झरते,
झरते-झरते बातें करते।
पेड़ हमारा पूज्य पिता है, 
हमको कन्धों पर बैठाया


इसके चरण छुएँ तो समझो,
हमने अपना फर्ज निभाया।।


                                    पाँच महीने

वर्षा आती, बादल लाती,
बरसाती पहला आषाढ़।
फिर बरसाती रिमझिम सावन,
भादों बरसे छप्पर फाड़।।
क्वाँर तपाता बुरी तरह से,
कार्तिक करे शरद के लाड़,
तब आती जगमग दीवाली,
अब दीपों की करो जुगाड़।।


                                भालू

लम्बे-लम्बे, काले-काले,
घने, घनेरे बाल।
दो पैरों पर चलता अपनी,
शाहंशाही चाल।।
कोई उसको रीछ पुकारे,
कोई कहता भालू।
डुग्गी की डिमडिम सुनते ही,
हो जाता है चालू।।



ट्रेफिक का सिपाही

ऊपर, नीचे, दाँयें, बाँयें,
चौराहे पर हाथ हिलाता।

चारों तरफ गड़ा कर नजरें,
फुर्र-फुर्र कर व्हिसल बजाता।
सदा खड़ा रहता है तन कर,
ड्यूटी करता मूरत बनकर।
ट्रेफिक को यह राह बताता,
गलती पर चालान बनाता।।



                                    आकाश

ईश्वर ने आकाश बनाया,
उसमें सूरज को बैठाया।
अगर नहीं आकाश बनाता,
चाँद-सितारे कहाँ सजाता,
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
एरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?




अखबार

रोज सुबह आता अखबार,
घर में मचती मारा-मार।
पापा पहला पेज खींचते,
चाचा पढ़ते अन्तिम पेज।



मम्मी पढ़तीं बस राशिफल,
सबका अपना-अपना क्रेज।।


दीवाली

कूड़ा कचरा साफ कराओ,
घर का हर कोना पुतवाओ।
लक्ष्मी को सादर बैठाओ,
जगमग-जगमग दीप जलाओ।।



फुलझड़ियोें से पिण्ड छुड़ाकर,
भर-भर पेट मिठाई खाओ।
छोड़ो नहीं पटाखे बिलकुल,
दीवाली कुछ नई मनाओ।।


चाँद में धब्बा

गोरे-गोरे चाँद में धब्बा,
दिखता है जो काला-काला।
उस धब्बे का मतलब हमने,
बड़े मजे से खोज निकाला।
वहाँ नहीं है गुड़िया, बुढ़िया,
वहाँ नहीं बैठी है दादी।
अपनी काली गाय सूर्य ने,
चन्दा के आँगन में बाँधी।।


अखबार और खाना

खाना खाते-खाते पढ़ते,
पापाजी अखबार।
इसी बात पर हो जाती है
मम्मी से तकरार।।



एक बार में एक काम पर,
अपना चित्त लगा लो।
बाथरूम में पढ़ आये हो,
अब तो खाना खा लो।।


मेरा मामा

मामा मेरा मस्त-मस्त है,
दिन भर मस्ती करता है।
इससे लड़ता, उससे भिड़ता,
नहीं किसी से डरता है।


मामा नहीं पजामा है,
फिर भी मामा, मामा है।।


                                                       बादल आया

बादल आया, बादल आया,
मीठा-मीठा पानी लाया।
रिमझिम-रिमझिम झड़ी लगी है,
झड़ी बहुत ही बड़ी लगी है।
पापा तब भी दफ्तर जाते,
इसीलिए शाबासी पाते।।



                                                        शहीद

सीमा की रखवाली करता,
कभी नहीं दुश्मन से डरता।
कदम-कदम पर खरा उतरता,
देश की खातिर जीता-मरता।
माँ पर शीश चढ़ाता है, 
वो शहीद कहलाता है।।
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संग्रह के ब्यौरे
गीत लहर - बाल गीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सन शाइन बुक्स, 4760-4761, द्वितीय तल, 23 अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
प्रकाशन वर्ष और मूल्य के ब्यौरे उपलब्ध नहीं।





दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बेटे-बहू 
गोर्की बैरागी और नीरजा बैरागी 
ने यह किताब उपलब्ध कराई।

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