रात से प्रभात तक

 



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की बारहवीं कविता 





रात से प्रभात तक

आकाश गंगा के तारे गिनना
शंख दस शंख
पद्म दस पद्म तक
और फिर कह देना अनन्त।
उसे थाहने की कोशिश में
अनमने मन, सप्तर्षि मण्डल से उलझना
और गिन लेना सातों तारे।
फिर ढूँढना हिरनी को
बात करना उसके तीन तारों से।
लौट आना अपने आप में
रह जाना नितान्त अकेला
अपरिचित अनजान अपने आप से
सब कुछ हो रहा हो मानो
किसी अहिल्‍या के श्राप से।
तब तक दूर कहीं
बोल पड़ती है टिटहरी
चीर देती है रात का सन्नाटा
समूची बस्ती बदल लेती है करवट
बिस्तर में खाँसने लगते हैं हलवाहे, किसान, खेत-मजूर।
यहाँ से वहाँ तक पेड़-पेड़ पर
जाग जाते हैं पंछी।
अधजगे बच्चों को जगाती माँएँ
बाड़ों में राँभती-रँभाती गाएँ।
तब भी शरीर में से कोई कहे
घड़ी-अधघड़ी और सो जाएँ।
होने को हो जाती है सुबह
गाएँ तैर जाती हैँ आकाशगंगा को
खेतों पर चले जाते हैं
रात भर के खाँसने वाले। 
एक मैं हूँ
और मेरी ही तरह के करोड़ों लोग
जो उठते ही
मसल कर हथेलियाँ
देखते हैं हाथ की रखाएँ
चौके में से पूछता हैं कोई
आज नाश्ते में क्या-क्या बनाएँ ?
और भनभना कर चला आता है सूरज
ठेठ मेरी छाती पर।
तब भी मन करता है पड़े रहें
धरती घूम ही रही है अपनी धुरी पर
हम बस एक चित्राम की तरह
बिस्तर में जड़े रहें।
न कोई हिलाए न कोई डुलाए
न कोई पानी को पूछे
न कोई चाय पिलाए।
पता नहीं इस थकान का
आधार कौन सा है?
आज तारीख तिथि या वार कौन सा है?
शरीर हो गया दीमक की बाँबी सा
विचार का वाल्मीकि
न जाने कब तक रहेगा जड़वत्?
ओठों तक आता हैँ अनुष्टुप छन्द
फिर हो जाती हैं आँखें बन्द
आखिर यह जड़ता किस बूते पर
हो गई है इतनी स्वच्छन्द?
न गाने देती है न रोने दती है
न जागने देती हे न सोने देती है।
मार कर लत्ती
पटक देती है बिछौने पर
प्रश्नचिह्न सी लगा जाती है
मेरे होने या न होने पर।

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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग






यह  संग्रह  हम  सबकी  ‘रूना’  ने  उपलब्ध  कराया  है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














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