अमर सिपहिया रे (नीलकण्ठ बनने की धुन में)




श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह
‘ललकार’ का आठवाँ गीत







दादा का यह गीत संग्रह ‘ललकार’, ‘सुबोध पाकेट बुक्स’ से पाकेट-बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई। इसीलिए इसके प्रकाशन का वर्ष मालूम नहीं हो पाया। इस संग्रह में कुल 28 गीत संग्रहित हैं। इनमें से ‘अमर जवाहर’ शीर्षक गीत के पन्ने उपलब्ध नहीं हैं। शेष 27 में से 18 गीत, दादा के अन्य संग्रह ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ में संग्रहित हैं। चूँकि, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है इसलिए दोहराव से बचने के लिए ये 18 गीत यहाँ देने के स्थान पर इनकी लिंक उपलब्ध कराई जा रही है। वांछित गीत की लिंक पर क्लिक कर, वांछित गीत पढ़ा जा सकता है। 
   

अमर सिपहिया रे (नीलकण्ठ बनने की धुन में)

नीलकण्ठ बनने की धुन में, कितना सहते जाओगे
यह मौका है मन की कर लो, वरना फिर पछताओगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद
यह प्रतिहिंसा ज़िन्दाबाद
खून की गंगा जिन्दाबाद
अमर तिरंगा जिन्दाबाद

निकल पड़ा है युग का चारण, फिर से मारू गाने को
बोल रहा है घर-घर जाकर, हर पगले परवाने को
नया रँगा कर अभी पहन लो, फिर केसरिया बाने को
अरे तिरंगा तड़प रहा है, पिण्डी पर फहराने को
इस बलिदानी राष्ट्र ध्वजा को, अमर सिपहिया रे
इस बलिदानी राष्ट्र ध्वजा को कब तक यूँ तड़पाओेगे
यह मौका है मन की कर लो, वरना फिर पछताओगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद.....

जिसने पैदा होते ही, युग जननी को कटवाया है
गाँधीजी का लोहू पीकर, जिसने जशन मनाया है
शान्तिदूत नेहरू को जिसने, आजीवन तड़पाया है
(वो) लालबहादुर के पंजों में, मुश्किल से ही.आया है
वादा करलो इस पापी को अमर सिपहिया रे
वादा करलो इस पापी को, जिन्दा नहीं बचाओगे
ये मौका है मन की कर लो, वरना फिर पछताओेगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद.....

लहू पिया अब्दुल हमीद का, इसको भूल न जाना तुम
पूनमसिंह का प्राण लिया है, इसको मत बिसराना तुम
प्रिय नरेन्द्र की बलिगाथा को मन से नहीं हटाना तुम
एक का बदला लाख से लेना, तभी लौटकर आना तुम
आओगे तो अपने घर को, अमर सिपहिया रे
आगे तो अपने घर को हँसता गाता पाओगे
यह मौका है मन की करलो वरना फिर पछताओगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद.....

अरब की खाड़ी रंग बदल दे, इतना खून बहा दो तुम
चकनाला और सरगोधा पर, क़ब्रिस्तान उठा दो तुम
बादिन पर बलवन्तराय का, बिखरा खून उगा दो तुम
हिन्दोस्ताँ को पहिले वाला हिन्दुस्तान बना दो तुम
राजघाट पर अरि-मुण्डों के अमर सिपहिया रे
राजघाट पर अरि-मुण्डों के कब अम्बार लगाओगे
यह मौका है मन की कर लो, वरना फिर पछताओगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद.....

गरुड़ सरीखे टूट रहे हो, भैया तुम्हें बधाई है
नव-पीढ़ी को गौरव तुम पर, इतराती तरुणाई है
हर भाषा ने गौरव गाथा, पूरे मन से गाई है
हर मजहब ने तुम पर अपनी, पूजाएँ निछराई हैं
आज भले ही सैनिक हो पर अमर सिपहिया रे
आज भले ही सैनिक हो पर कल अवतार कहाओगे
यह मौका है मन की कर लो वरना फिर पछताओगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद.....

जो-जो भी बम डाल रहे हैं, मिले हुए खैरातों में
उतर रहे हैँ चमगादड़ जो, आसमान से छातों में
पहिले उनको जिन्दा लाना, डाल हथकड़ी हाथों में
फिर भरना बारूद गले तक, मक्कारों की आँतों में
किस दिन यह नज्जारा हमको अमर सिपहिया रे
किस दिन यह नज्जारा हमको, सच कह दो दिखलाओगे
यह मौका है मन की कर लो वरना फिर पछताओगे
अमन अहिंसा जिन्दाबाद.....

रोज-रोज का झंझट मेटें, चार हुँकारें भरलें हम
और बैरी को ठण्डा करके, माँ के मन की कर लें हम
घुटनों तक तो उतर गए हैं, थोड़े और उतर लें हम
एक बार तो मरना ही है, माँ-चरणों पर मर लें हम
तने हुए इस महाशीश को अमर सिपहिया रे
तने हुए इस महाशीश को, तिल भर नहीं झुकाओगे
यह मौका है मन की करलो वरना फिर पछताओगे
अमन अहिसा जिन्दाबाद.....
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गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया। 

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