महाभोज की भूमिका




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की छठवीं कविता






महाभोज की भूमिका

ना!
लुप्त नहीं हुए हैं गिद्ध
दिनानुदिन बढ़ रहा है
उनका वंश
बढ़ गई हैं उनकी प्रजातियाँ
वे तुम्हें दिखाई नहीं पड़ते
तो दिन चढ़ते
सोच मत लेना वैसा कुछ।

बेशक वे ओझल हैं
तुम्हारी नजरों से
लेकिन उन्हें तुम
खूब दिखाई पड़ रहे हो
उनकी जद में हो तुम।
वे आकाश में
सान रहे हैं अपनी चोंचें
नाप रहे हैं दिशाएँ
अपलक है उनकी गिद्ध दृष्टि।

इस बार वे
नहीं बैठेंगे तुम्हारी मुँडेरों पर
तुम्हारे बाड़ों, बरगदों और
मरे ढोरों के ढेरों पर।
अब वे बैठेंगे
सीधे तुम्हारे माथों पर
उनकी चोंच होगी
सीधी तुम्हारी आँतों पर।
उनके भार और प्रहार
से जुड़ नहीं जाए
तुम्हारा भवितव्य
यह है आज की चिन्ता।

तुम रटते रहना
‘पूरब’, ‘पूरब’
वे पश्चिम से
उतर आएँगे।
तुम करते रहना
उनकी प्रजातियों पर शोध,
वे अपना महाग्रास
तुम्हारे ‘पूरब’ को नहीं,
तुम्हें ही बनाएँगे।

तुमसे किसने कह दिया कि
लुप्त हो गए हैं गिद्ध?
उनके महाभोज की भूमिका
बनने से पहले ही
हो गई है स्वयंसिद्ध।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली


















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