आधुनिक स्कूल

 
 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की पन्द्रहवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



आधुनिक स्कूल

गाँव से थोड़ी दूर
जहाँ खड़ी है नशे में चूर
एक लम्बी खजूर
जो बाँझ है
जिस पर फल नहीं है
जिसकी छाया में छाया की अकल नहीं है।
जिसके दायें
बालू की एक ढेरी पड़ी है
जिसके बाँयें
नीम पर गिलोय चढ़ी है।
जिससे कोई दो सौ गज दूर
एक पुराना बबूल है
इन सबके बीच में जो इमारत है न
वह हमारे गाँव का नया स्कूल है।
जी हाँ!
स्कूल है, मदरसा है, पाठशाला है
जी हाँ! जी हाँ! जिसके पिछवाड़े एक गन्दा नाला है
यहाँ संस्कार मिलते हैं
देश के नौनिहालों को
आत्मबल मिलता है संस्कृति के रखवालों को।
यहाँ वे पढ़ते हैं, लिखते हैं, सीखते हैं
बरसों झींकने के बाद भी वार्षिक परीक्षा में
टीपते हैं।
खैर,
भूल जाते हैं, नकल कर लेते हैं
कहने को जिन्दगी सफल कर लेते हैं।
पर सब थोड़े ही भूलते हैं?
बहुत सा याद रहता है
जो खजूर, बबूल, नीम और बालू पर से 
नाले में बहता है।
जो याद रहता है वह ओठों पर है
उसे रटते हैं, सुनाते हैं, फंक्शन्स में, गेदरिंग्स में
त्यौहारों पर
जो टॉप सीक्रेट है उसे डेकोरेट किया है
बाथ-रूम की दीवारों पर।
जो प्रॉस्पेक्टस में छपा है
वह सब फिजूल है
भाई! माफ कीजिएगा
यह हमारा नया स्कूल है।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















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