घड़ी बड़ी नाजुक है






श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह
‘ललकार’ का बारहवाँ गीत







दादा का यह गीत संग्रह ‘ललकार’, ‘सुबोध पाकेट बुक्स’ से पाकेट-बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई। इसीलिए इसके प्रकाशन का वर्ष मालूम नहीं हो पाया। इस संग्रह में कुल 28 गीत संग्रहित हैं। इनमें से ‘अमर जवाहर’ शीर्षक गीत के पन्ने उपलब्ध नहीं हैं। शेष 27 में से 18 गीत, दादा के अन्य संग्रह ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ में संग्रहित हैं। चूँकि, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है इसलिए दोहराव से बचने के लिए ये 18 गीत यहाँ देने के स्थान पर इनकी लिंक उपलब्ध कराई जा रही है। वांछित गीत की लिंक पर क्लिक कर, वांछित गीत पढ़ा जा सकता है।  
  

घड़ी बड़ी नाजुक है

मत समझो हो गया अँधेरा
नहीं उजेला होने का
घड़ी बड़ी नाजुक है साथी
समय नहीं है रोने का

दो क्षण को कँप लिया तिरंगा, देखो फिर फहराता है
आँसू पोंछ लिये माता ने, माता आखिर माता है
हलधर ने फिर हल जोता है, बादल फिर से गाता है
ऐसे में ये रोना-धोना, बुरा शकुन कहलाता है
फिर से पूछ रही है धनिया
महुरत अपने गौने का
मत समझो हो गया अँधेरा, नहीं उजेला होने का
घड़ी बड़ी नाजुक है.....

कल चटका वो आज खिलेगा, खिला उसे मुरझाना है
महासृजन का अटल नियम यह, क्या तुमको समझाना है
किसको यहाँ सदा रहना है, किसका यहाँ ठिकाना है
मुट्ठी भर साँसों की गठरी, मरघट तक पहुँचाना है
आत्मसात कर आत्मज्योति को
छोड़ो मोह खिलौने का
मत समझो हो गया अँधेरा, नहीं उजेला होने का
घड़ी बडी नाजुक है
.....

कितना काम पड़ा है घर में, तुम हो रोये जाते हो
नाहक मुँह को ढाँप रहे हो, नाहक रोये जाते हो
नई मसें फूटी हैं इनका, गौरव क्यों बिसराते हो
इन्हें पसीने के बदले तुम, आँसू से नहलाते हो
(अरे) कभी तो ख्याल करो तुम, नई मूँछ के कोने का
मत समझो हो गया अँधेरा, नहीं उजेला होने का
घडी बड़ी नाजुक है
.....

चलो मशीनें बुला रही हैं, वो खलिहान बुलाता है
नदियों का न्यौता आया है, धान खड़ा मुसकाता है
धरती देती है आवाजें, परवत शीश उठाता है
नई कली को बिना तुम्हारे, पल भर नहीं सुहाता है
उपलब्धि की बात करो कुछ
समय नहीं है खोने का
मत समझो हो गया अँधेरा, नहीं उजेला होने का
घड़ी बड़ी नाजुक है
.....

इससे ज्यादा और बुरी क्या, हम पर होने वाली है
मावस लीप चुकी है घर को, कल पड़वा उजियाली है
अब जो हिम्मत हार गये तुम, थामी नहीं कुदाली है
तो फिर समझो बिगड़ी किस्मत नहीं सँवरने वाली है
श्रम से काया पारस करलो
फिर सब कुछ है सोने का
मत समझो हो गया अँधेरा, नहीं उजेला होने का
घड़ी बड़ी नाजुक है
.....
-----

-----

 


गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया।

 

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.