एक निवेदन

 




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की अट्ठाईसवीं कविता 





एक निवेदन

जन्म भर तुमसे असहमत ही रहा हूँ.
इसलिए मैं आज भी सहमत नहीं हूँ
उस दिशा से
जिस दिशा में रास तुमने मोड़ कर के
छोड़ना चाहा मुझे था।
स्पष्ट सुन लो
मैं असहमत हूँ तुम्हारी मृत्यु से भी।
प्रार्थता का प्रश्न ही पैदा नहीं होता
स्वार्थ है
सचमुच सनातन स्वार्थ है
शुद्ध मेरा, या कि
मेरी ही तरह लाखों करोड़ों का।
मत करो तैयारियाँ अन्तिम बिदाई की
रहो जीवित
खिलौना टूटने मत दो।
तुम्हें हम छू सकें, बतिया सकें
वक्त आने पर तुम्हें हम दे सकें धोखा
इसलिए मैं कह रहा हूँ
मत करो तैयारियाँ अन्तिम बिदाई की
रहो जीवित।
यदि कहीं तुम चल बसे
तो फिर वही षड़यन्त्र होगा
जो तुम्हारी जान लेने पर तुले हैं
वे सभी साथी तुम्हारे
हाँ वही
जिनको कि तुम अनुयायियों में मानते हो
दूर गंगा या कि जमना के किनारे
एक स्मारक था समाधि
रस्म में बनवायेंगे
और उस पर
दूसरे तट खड़े मेरी तरह के लोग
ठाठ से जाकर शपथ खा जायेंगे
और फिर हम देश को देंगे दगा
यह शपथबाजी यहीं से बन्द हो
तुम करो मेरी मदद
मत करो तैयारियाँ अन्तिम बिदाई की
रहो जीवित
प्रार्थना का प्रश्न ही पैदा नहीं होता
यह सरासर स्वार्थ है
स्मारकों की श्रेणियों से दूर ही खुद को रखो
तुम मरो मत 
द्वार किसके जायेगी
मेरी असहमति
इन करोड़ों असहमतियों को
इस घड़ी विधवा करो मत।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग





यह  संग्रह  हम  सबकी  ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














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