दादा के प्रति

 


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की छठवीं कविता 









दादा के प्रति
(‘दादा’ याने श्री भवानी प्रसादजी मिश्र)

देवता का आत्मकद
प्रभु ने दिया तुमको
मगर तुम कद नहीं
देवत्व भर जीते रहे।
एक साधारण मनुज के तौर पर
पीढ़ियों का दर्द नित पीते रहे।

आकाश की उपमा तुम्हें दूँ
किन्तु तुम लोगे नहीं
मैं जानता हूँ
दे दिया सर्वस्व तुमने पीढ़ियों को
किन्तु अपनी यह अकिंचन-सी अकिंचनता तुम
हमें दोगे नहीं
मैं जानता हूँ।

निष्कपट इतने रहे कि
खुद कपट तक खा गया तुमसे कपट
लाभ की रेखा तुम्हारे हाथ से
धूर्तंता की चील ने जब ली झपट
तब भी खड़े हँसते रहे
निश्छल हँसी
ज्यों कि कोई शिशु हँसे।

और फिर घायल हथेली ले
पढ़ने लगे आराम से
अन्ततः खुद ही अपरिचित हो गए
अपने सुपरिचित नाम से।

देखता हूँ जब तुम्हें तो
सोचता हूँ
सत्य ही इस देश में शायद
जनक जन्मा कभी होगा
और उसने तोड़ कर कच्ची धरा
हल्या किया होगा अहल्या को।

उस जनक ने एक सीता पाल कर
रामत्व सौंपा राम को
एक तुम हो
जो जनक से हो बड़े
हर ओर सीताएँ पड़ी हैं भूमि पर
हर द्वार पर रक्‍खे हुए हैं शिव धनुष।
किन्तु तुम आश्वस्त हो
अपनी तपस्या के भरोसे
और फिर निर्लिप्त भी।

सेतुगाथा हो परम संस्कार की
राम को रामत्व से प्रतिपल मिलाते ही रहे
अग्नि कुण्डों में अलख अन्याय के
अग्निवर्णी कामना के
रक्त पाटल
पीढियाँ पूजा करें इस भावना से
एक शुचिता की तरह
प्रतिपल खिलाते ही रहे।

तुम वटों के देश में वटवृक्ष हो
और पूजा में 
कलश हो नीर के
अतिशयोक्तियाँ सब लग रहीं गूँगी मुझे
हाय!
अब कैसे दिखाऊँ में कलेजा चीर के।

आकाश की ऊँचाइयाँ दीं जिन सिरों को
आज वे सिर झुक रहे अपने विधाता को
परछाँइयों की वन्दना है देह को
निर्माल्य करता है नमन
अपने प्रदाता को।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग








यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














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