एक-एक अभिलाषा माँ

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की अड़तीसवीं/अन्तिम कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।



एक-एक अभिलाषा माँ

एक-एक अभिलाषा माँ हम, तेरी पूर्ण करेंगे
तेरे लिये जियेंगें माँ हम, तेरे लिये मरेंगे

तेरा दूध पिया है माँ और, तुझसे खून बना है
इसीलिये सीना चौड़ा है, और ये शीश तना है
समय पड़ा तो फिर चरणों में, हँस कर शीश धरेंगे
तेरे लिये जियेंगे माँ हम.....

खूब याद है माँ तेरा वह, हुलराना-दुलराना
क्या भूलेंगे माँ हम तेरा, दर्द भरा अफसाना
लेकिन माँ अब तेरे आँसू, हरगिज नहीं झरेंगे
तेरे लिये जियेंगे माँ हम.....

कल से नहीं पसारेगी माँ, अब तू रीती झोली
आज कसम खाते हैं माँ हम, हमऊमर हमजोली
नीलम-मोती की फसलों से, हम खलिहान भरेंगे
तेरे लिये जियेगें माँ हम.....

समझ गये हैं माँ हम तेरी, एक-एक अभिलाषा
सचमुच माँ हम नई लिखेगें, यौवन की परिभाषा
कल भी नहीं डरे थे माँ हम, कल भी नहीं डरेंगे
तेरे लिये जियेगें माँ हम.....
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)









यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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