श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की अट्ठाईसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की अट्ठाईसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
कोरा प्रमाद
स्वजनों के लिये
संज्ञा
सज्जनों के लिये
सर्वनाम
परिजनों के लिए सम्बोधन
और अपरिचितों के लिये
एक प्रयोजन-पूर्ण
सजीव शरीर-मात्र हूँ।
कवि कोई नहीं मानता मुझे
किसी का कवि नहीं हूँ मैं।
मेरे पूरक शरीर तक को
मेरी एक भी पंक्ति याद नहीं,
फिर भी खुद को कवि कहना
क्या कोरा प्रमाद नहीं?
और
तुम अपेक्षा करते हो मुझसे
अग्नि-वर्णी क्रान्ति की,
दाद देता हूँ तुम्हारी इस
भौलिक भ्रान्ति की।
जिस पर तुम
चस्पा करना चाहते हो
क्रान्ति।
उसे समझा देते हैं वे
केवल परिवर्तन से।
पेट का यह टापू
कभी नहीं जुड़ता जीवन से।
पेट और जीवन
चिन्तन के अलग-अलग छोर हैं
पेट की बात अलग
और
जीवन की बात और है।
जीवन की प्यास है क्रान्ति
पेट की भूख है रोटी,
और जब कविता
जुड़ जाती है पेट से,
तब वह नहीं मरोड़ पाती
किसी नल की टोंटी।
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रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०९-१०-२०२१) को
'अविरल अनुराग'(चर्चा अंक-४२१२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चयन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकवि कोई नहीं मानता मुझे
ReplyDeleteकिसी का कवि नहीं हूँ मैं।
मेरे पूरक शरीर तक को
मेरी एक भी पंक्ति याद नहीं,
फिर भी खुद को कवि कहना
क्या कोरा प्रमाद नहीं?
वाह बहुत ही उम्दा
अक्सर सभी रचनाकारों कहानी है!
ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा हौसला बढा।
Deleteजीवन का सत्य कह दिया आ0
ReplyDeleteगूढ़ भाव
टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसुंदर, सार्थक रचना !........
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है।
टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteमेरा तकनीकी ज्ञान अत्यल्प है। अपने ब्लॉग की लिंक भेजने की अनुकम्पा करें।
जीवन की प्यास है क्रान्ति
ReplyDeleteपेट की भूख है रोटी,
और जब कविता
जुड़ जाती है पेट से,
तब वह नहीं मरोड़ पाती
किसी नल की टोंटी।
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कटु सत्य का गहन शब्द-चित्र।
जी प्रणाम सर।
सादर।
ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा हौसला बढा।
Deleteबहुत शानदार रचना बैरागी जी की, कितनी सादगी से वह कह गये इतनी सार्थक बात।
ReplyDeleteब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा हौसला बढा।
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