श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की छत्तीसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की छत्तीसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
भाई देवदार
शेखी मत बधार
भाई देवदार!
दिखाई दे रहा है कि
तू आसमान तक ऊँचा उठ गया है
और अपने आसपास वाली दूब को
गाली-गलौज पर जुट गया है।
पर
कभी थाह ली तूने अपनी जड़ों की?
शायद नही-
तेरी ऊँचाई को उठाये खड़ी हैं
तेरी जड़ें।
याने कि पाताल-फोड़ नीचाई!
हर ऊँचाई की
होती है एक नीचाई
देवदार मेरे भाई!
दूब की ऊँचाई ने अगर
आसमान नहीं छुआ
तो तुझे घमण्ड किस बात का हुआ?
उसकी नीचाई भी
पाताल-फोड़ नहीं है
आकाश है तेरा
और उस नन्हीं दूब का पिता
धरती है दोनों की माँ।
बाप को तमाचा मारने के लिए
माँ की
वह भी धरती-जैसी माँ की
छाती चीर देना
शायद तुझ-जैसे ‘ऊँचे’ लोगों का ही है काम -
तो मेरे भाई!
ऐसी बुलन्द ऊँचाई को
दूब का दूर से ही राम-राम।
भाई देवदार!
शेखी मत बघार
तू भाग्य से हो गया यदि ऊँचा और पूज्य
तो याद रख
दूब ही से सजती है पूजा की थाली
अपनी नीचाई को याद रख
और मत दिया कर
पूजा की सामग्री को गाली।
कहीं खराद पर चढ़ रहे हैं
तेरे लिये भी आरे और कुल्हाड़े
तुझे लादने को जुट रहे हैं
कहीं खाली गाड़े।
साल-छः माह में
दूब फिर उग आयेगी।
पर भाई देवदार!
तेरी नीचाई
तेरी ऊँचाई को
हमेशा हमेशा के लिये
खा जायेगी ।
इसीलिये कह रहा हूँ
भाई देवदार!
शेखी मत बघार।
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रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-10-21) को "/"रावण मरता क्यों नहीं"(चर्चा अंक 4220) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वाह!बहुत ही बढ़िया सृजन।
ReplyDeleteसाधुवाद आदरणीय।
सादर
ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा हौसला बढा।
Deleteदिल को छूती सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteटिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
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