श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की बाईसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की बाईसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
क्या करेंगे?
उन्होंने पीठ सहलाने के बहाने
मेरी पीछ में छुरा मारा।
लहू जरूर बहा मेरा,
पर मर गये वे खुद।
कारण जानकर क्या करेंगे?
मेरी पीठ में छुरा घोपनेवाले
हमेशा मुझसे पहिले मरेंगे।
समूचे पीठ-प्रदेश में
मैं सम्हाल कर रखता हूँ
उन्हीं विश्वासघातियों का दिल
उनका हर छुरा लगता है
उन्हीं के दिलों में।
छटपटाकर वे
चीख भी नहीं सकते
तड़प-तड़प कर मर जाते हैं।
आप-जैसे-सौ पचास लोग
चूमते हैं मेरे बहते घाव
और वे हरे-हरे घाव मजे से भर जाते हैं।
विभीषण बेशक हो सकते हैं लंकापति
पर जस के चँदोवे उनके माथों पर
नहीं तनते
वे मिलें तो उनसे कह देना कि
त्रेता से आज तक का इतिहास देख लो,
कभी भी विभीषण के
मन्दिर नहीं बनते।
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रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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बहुत सुंदर।
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