तीन कविताएँ ‘आसान’, ‘वही बीज’ और ‘दायित्व बोध’



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की तीन कविताएँ  


यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।



तीसवी कविता 
आसान

बहुत आसान है नारा लगाना
और भी आसान है वादा भुलाना
पर ये उससे भी आसान काम कर रहे हैं
वे आत्महत्या करके मर गये
ये इसी खुशी में मर रहे हैं।
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इकतीसवी कविता 
वही बीज

इतना गरजे आशा के बादल
इतना बरसे विश्वास के मेघ
ऐसी तैयार हुई धरती
कि ढूँढे नहीं मिलती है मिसाल
पर बोवनी के वक्त फिर वही कमाल
कि मेड़-मेड़ पर
सलाह-मशविरे हो रहे हैं
बैशक तुम झोली में हाथ डालकर देख लो
वे फिर से निराशा बो रहे हैं।
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बत्तीसवी कविता 
दायित्व बोध

कहते हैं
जब दायित्व आता है
तो तीर भी कमान बन जाता है।
झुक जाती है उसकी रीढ़
खो जाती हैं प्रखरता
बँध जाते हैं उसके बिन्दु
तन जाती है उसकी प्रत्यंचा
नपा-्तुला हो जाता है उसका घेरा
टंकार और लचक हो जाते हैं उसके गुण
तब जो हो निपुण
वो उसे कन्धे पर धारे
यूँ तो तीरन्दाज बहुत फिरते हैं
मारे-मारे ।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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